21-01-69
ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"शरीर
छूटा परन्तु हाथ और साथ नहीं"
सभी अव्यक्त मूर्त हो बैठे हो?
व्यक्त रूप में रहते अव्यक्त स्थिति में रहना
है । जब अव्यक्त स्थिति में स्थित हो जायेंगे तो उस अव्यक्त
स्थिति में कोई उलझन नहीं रहेगी । वर्तमान समय चल रहे सभी
पार्ट आप बच्चों को अति शीघ्र अव्यक्त बनाने के साधन है । डगमग
होने की जरूरत नहीं । शुरू में यह की स्थापना भी अनायास ही हुई
थी । जब आप शुरू में यज्ञ की स्थापना में आये थे तो आप सभी से
निश्चय के पत्र लिखाये थे । यही निश्चय लिखाते थे कि अगर
ब्रह्मा चला जाए - तब भी हमारी अवस्था,
हमारा निश्चय अटल रहेगा । वह निश्चय पत्र याद है?
निश्चय उसको कहा जाता है जिसमें किसी भी
प्रकार का, किसी भी स्थिति अनुसार,
विघ्न के समय संशय नहीं आता । परिस्थितियों तो
बदलनी ही हैं, बदलती ही रहेंगी । लेकिन
आप जैसे गीत गाते हो ना-बदल जाए दुनिया न बदलेंगे हम तो ऐसे ही
आप सभी निश्चय बुद्धि आज के संगठन में बैठे हुए हो?
आपकी मम्मा आप सबको कहा करती थी कि निश्चय के
जो भी आधार अब तक खड़े हैं वह सब आधार निकलने ही हैं और निकलते
हुए भी उसकी नींव मजबूत है । अगर नींव मजबूत नहीं तो आधार की
आवश्यकता है । आधार कौनसा? बाबा का
आधार, संग- ठन का आधार,
परिवार के नियमों का आधार नहीं छोड़ना । परन्तु
परीक्षा के समय जो सीन सामने आती है उसमें निश्चय तो नहीं टूटा
। निश्चय अटूट होता है । वह तोड़ने से टूटता नहीं । ऐसे ही
निश्चय बुद्धि गले के हार हैं । क्या ब्रह्मा आपका बहुत प्यारा
है? था नहीं परन्तु है । तो क्या वह
नहीं कहा करते थे? बातें तो सभी बोली
हुई हैं । समय पर याद आना ही तीव्र पुरुषार्थ है । याद करो ।
वह भी आप बच्चों को मजबूत बनाने के लिए कहते थे । बापदादा ने
बच्चों का इतना श्रृंगार किया है तो क्या बच्चे इतना श्रृंगार
धारी नहीं बने हैं? एक दिन ऐसा समय
आयेगा जो इस बापदादा के श्रृंगार को याद करेंगे । तो अभी वह
समय है । पहले तो वह अपने को निरहंकारी,
नम्रचित कहते हुए कई बच्चों को यह सुनाते थे
कि मैं भी अभी सम्पूर्ण नहीं बना हूँ । मैं भी अभी निरन्तर
देही अभिमानी नहीं बना हूँ । लेकिन आपने अपने अनुभव के आधार से
तीन चार मास के अन्दर ध्यान दिया होगा,
सन्मुख मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ होगा तो अनुभव किया होगा
कि यह ब्रह्मा अब साकारी नहीं लेकिन अव्यक्त आकारी रूपधारी है
। कुछ वर्ष पहले ब्रह्मा छोटी-छोटी बातें सुनते थे,
समय देते थे लेकिन अब क्या देखा?
इन छोटी-छोटी बातों को न सुनने का कारण क्या
था कि यह समय निरन्तर याद में बीते । क्या आप बच्चों ने उनके
तन द्वारा कभी नोट नहीं किया कि उनके मस्तक में सितारा चमकता
हुआ नजर आता था? अव्यक्त स्थिति में जो
होंगे उन्होंने अव्यक्त मूर्त को जाना,
पहचाना । जो खुद नहीं अव्यक्त अवस्था में रहते थे उन्हों ने
अमूल्य रतन को पूरी रीति नहीं पहचाना । अभी भी स्थापना का
कार्य ब्रह्मा का है न कि हमारा । अभी भी आप बच्चों की पालना
ब्रह्मा द्वारा ही होगी । स्थापना के अन्त तक ब्रह्मा का ही
पार्ट है । अभी आप सभी बच्चे सोचते होंगे कि ब्रह्मा द्वारा
पढ़ाई कैसे होगी । यूँ तो वास्तव में अवस्था के प्रमाण कैसे,
क्यों के क्वेश्चन उठना नहीं चाहिए । लेकिन कई
बच्चों के अन्दर प्रश्न तो क्या लेकिन काफी हलचल का सागर शुरू
हो गया है । यह पहला पेपर बहुत थोड़ों ने पास किया । कुछ तो
धीर्य रखो । जब अविनाशी ज्ञान है,
अविनाशी पढ़ाई है तो फिर यह प्रश्नों की हलचल क्यों?
फिर भी उसी हलचल को शान्त करने के लिए समझा
रहे हैं ।
क्लास जैसे चलती है वैसे ही चलेगी । क्या सुनायेंगे?
जो ब्रह्मा का तन मुकरर है तो मुरली उसी के तन
द्वारा जो चली है वही मुरली है । और सन्देशियों द्वारा थोड़े
समय के लिए जो सर्विस करते हैं, उनको
मुरली नहीं कहा जाता है । उस मुरली में जादू नहीं है । बापदादा
की मुरली में ही जादू है । इसलिए जो भी मुरलियॉ चल चुकी हैं,
वह सभी रिवाइज करनी है । जैसे पहले पोस्ट जाती
थी वैसे ही मुख्य सेवाकेन्द्र पर आबू से जाती रहेगी । क्या
आपको एक वर्ष पहले जो मुरली चली थी वह याद है?
कल जो पढ़ी होगी वह भी याद नहीं होगी । कई
प्याइन्ट्स ऐसी हैं जो कई बार पढ़ने से भी बुद्धि में नहीं
ठहरती । इसलिए मुरली और पत्र का जैसे कनेक्शन होता है वैसे ही
होगा । जैसे आप मधुबन में रिफ्रेश होने आते हो वैसे ही आयेंगे
। क्या करें, किससे मिलने आवें?
अब फिर यह प्रश्न उठता है?
किससे रिफ्रेश होंगे?
जो लकी सितारे हैं अर्थात् जो निमित्त मुख्य हैं उनके साथ पूरा
सम्बन्ध जोड़कर जो भी आपके सेवाकेन्द्र की रिजल्ट है,
समस्याएं है जो भी सेवाकेन्द्रो की उन्नति है,
जो भी नये-नये फूल उस फुलवाडी से खिलते हैं,
उनको भी संगठन का साक्षात्कार कराने मधुबन में
ले आना है । साथ-साथ ऐसे संगठन के बीच बापदादा निमित्त बनी हुई
सन्देशी द्वारा पूरी सेवा करेंगे । अभी कोई और प्रश्न रहा?
आप सोचते होंगे कि लोग पूछेंगे कि आपका
ब्रह्मा बाबा 100 वर्ष से पहले ही चला
गया । यह तो बहुत सहज प्रश्न है कोई मुश्किल नहीं । 100
के नजदीक ही तो आयु थी यह जो 100 वर्ष
कहे हुए हैं यह गलत नहीं है । अगर कुछ रहा हुआ है तो आकार
द्वारा पूरा करेंगे । 100 वर्ष ब्रह्मा
की स्थापना का पार्ट है । वह तो 100
वर्ष पूरा होना ही है लेकिन बीच में ब्रह्मा के बाद ब्राह्मणों
का जो पार्ट है वह अब चलना है । ब्रह्मा ने ब्राह्मण किसलिए
रचे? क्या ब्रह्मा अपनी रचना को
देखेंगे नहीं? क्या आपको अब काम पर
जिम्मेवारी का ताज नहीं देंगे? तो
सतयुग में देवता कैसे बनेंगे । यहाँ की जिम्मेवारी ही वहाँ की
नींव डालती है । इसलिए जो भी आप बच्चों से प्रश्न करते हैं
उन्हें यही उत्तर दो कि ब्रह्मा की स्थापना तो चलनी ही है ।
अभी बच्चों की पढ़ाई का समय बिल्कुल ही नजदीक है । यह तो हरेक
मुरली में मम्मा के बाद ईशारा दिया है । क्या पेपर में तिथि
तारीख बताया जाता है? जो पहले से ही
बताया जाए उसको क्या पेपर कहेंगे? पेपर
वह होता है जो अचानक होता है । किसके मन में जो होता है वह
अचानक नहीं होता है । रिजल्ट में क्या देखा! पूरे पास नहीं हुए
। कुछ न कुछ कमी एक-एक में देखी । फिर भी बहुत अच्छा । क्योंकि
समय पुरुषार्थ का है । उस प्रमाण रिजल्ट अच्छी ही कहेंगे ।
बाकी तो बापदादा दोनों ही एक बात पर खुश थे । वह कौनसी?
बच्चों ने संगठन और स्नेह दोनों का सबूत दिया । ब्रह्मा वतन से
देख रहे थे कि कैसे-कैसे कोई आता है,
कब-कब आता है । किस रूहाब से आता है । किस
स्थिति से मिलते हैं! यह भी रिजल्ट बापदादा दोनों ही इकट्ठे
देखते रहे । तो हरेक खुद को देखे और खुद में जो कमी हो उसको
भरे । बाकी आज से सभी के लिए कौन निमित्त है?
वह तो आप जानते ही हैं - दीदी तो है,
साथ में कुमारका मददगार है । जैसे और सभी
लिखा-पढ़ी चलती थी वैसे ही हेड क्वार्टर से चलती रहेगी । यह
दोनों आप सभी की देख-रेख करती रहेंगी । अगर आवश्यकता हुई तो आप
सभी के सेवाकेन्द्रों पर चक्कर लगाती रहेंगी । लेकिन अब का
पेपर क्या है? यह तो अचानक पेपर निकला
परन्तु जो आने वाला पेपर है, वह बताते
हैं । अब एकमत, अन्तर्मुख और अव्यक्त
स्थिति में स्थित होकर सम्बन्ध में आओ । यही बापदादा जो पेपर
बता रहे हैं उसकी रिजल्ट देखेंगे । पिछाड़ी के समय ब्रह्मा तन
द्वारा जो शिक्षा दी है वह तो सभी ने सुनी ही होगी और याद भी
होगी ।
आज के दिन इस संगठन के बीच कुछ देने भी आये हो तो कुछ लेने भी
आये हो । तो जो लेंगे वह देने के लिए तैयार हैं?
जिसके दिल में कुछ संकल्प आता हो कि नामालूम
क्या हो-ऐसी तो कोई बात नहीं होगी वह हाथ उठावे - अगर सभी
सन्तुष्ट हैं तो जो लेंगे उसको देने में भी सन्तुष्ट रहेंगे ।
दो बातों का आज इस संगठन के बीच दान देना है । कौनसी दो बातें?
एक मुख्य बात कि आज से आपस में एक दो का अवगुण
न देखना, न सुनना,
न चित पर रखना । अगर कोई बहिन या भाई की कोई
भी बात देखने में आये तो निमित्त बने हुए जो हैं उनके द्वारा
उनको ईशारा दिला सकते हो । दूसरी बात कई लोग आपके निश्चय को
डगमग करने के लिए बातें बोलेंगे, आवाज
फैलयेंगे कि अब देखे यह संस्था कैसे चलती है । लेकिन उन लोगों
को यह मालूम नहीं कि इन्हों का आधार अविनाशी है । दूसरा यह भी
ध्यान में रखना कि कोई भी हिलाने की कोशिश करे तो जैसे आप
बच्चों का कल्प पहले का गायन है अंगद के समान पांव को नहीं
हिलाना है । ऐसे निश्चय बुद्धि अडोल,
एकरस ही, जो आने वाले लास्ट पेपर हैं,
उसमें पास होंगे । और ही ब्रह्मा द्वारा जो
इतने ब्राह्मण रचे हैं तो क्या बाप के जब बच्चे बड़े हो जाते
हैं तो बाप रिटायर नहीं होता? अब ऐसे
समझो कि बाप रिटायर अवस्था में भी आपके साथ है । आप बच्चों को
कार्य देकर देखते रहेंगे । शरीर छूटा परन्तु हाथ-साथ नहीं छूटा
। बुद्धि का साथ-हाथ नहीं छूटा । वह तो अविनाशी कायम रहेगा ।
यह दो बातें जो सुनाई-एक डगमग न होने का दान देना है । दूसरा
अवगुण न देखने का दान देना है । अगर सभी बच्चे यह ध्यान दे
जबकि संकल्प कर चुके आर्थात् दे चुके। संकल्प की हुई चीज कभी
वापस नहीं ली जाती । अगर माया वापस लेने की कोशिश कराये भी तो
यदि अपने ऊपर जाँच होगी तो पास हो जायेंगे ।
अभी एक और बात आप सबके ध्यान पर दे रहे
हैं -
बापदादा की लास्ट मुरली में जो शिक्षा
मिली है कि यह ध्यान दीदार ज्यादा चलाना समय व्यर्थ गंवाना है
। इसलिए यह नहीं होना चाहिए । ऐसे न हो सन्देशियों द्वारा
सेन्टर पर जो पार्ट चले,
उसे आप चेक न कर पाओ । इस- लिए यह निमित्त बनी
हुई दीदी और कुमारका जिस सन्देशी को मुकरर करेगी उन्हों के
द्वारा डायरेक्शन मिलेंगे । इस पार्ट के लिए भी यह जिसको
निमित्त बनायेंगी उस द्वारा ही रहस्य स्पष्ट होंगे । जैसे
पिछाड़ी की मुरली में यह भी डायरेक्शन था कि भोग के समय बैकुण्ठ
आदि में जाना व्यर्थ समय गंवाना है । क्योंकि यह घूमना फिरना
अब शोभता नहीं । अब तो निरन्तर याद की यात्रा और जो शिक्षा
मिली है उसे प्रैक्टिकल लाइफ में धारण करने का सबूत देना है ।
अगर ब्रह्मा बाबा के साथ स्नेह है तो स्नेह की निशानी क्या है?
स्नेह यह नहीं कि दो आंसू बहा दिये । परन्तु
स्नेह उसको कहा जाता है - जिस चीज से उसका स्नेह था उससे आपका
हो । उसका स्नेह था सर्विस से । पिछाड़ी में भी सर्विस का सबूत
दिया ना । तो स्नेह कहा जाता है सर्विस से प्यार,
उसकी आज्ञाओं से प्यार । बाकी कोई भी ऐसा न
समझे कि ना मालूम बिना हम बच्चों की छुट्टी के साकार बाबा को
वतन में क्यों बुलाया । लेकिन छुट्टी दिलाते तो आप देते?
इसीलिए ड्रामा में पहले भी देखा कि जो भी गये
छुट्टी लेकर नहीं गये । इसलिए यह समझो कि ब्राह्मण कुल की
ड्रामा में यह रसम है । जो ड्रामा में नूंधी हुई है वह रसम चली
। यूँ तो समझते हैं कि आप सभी का बहुत प्यार साकार के साथ था ।
था नहीं है भी । प्यार नहीं होता तो इस सभा में कैसे होते ।
साकार में फॉलो करने के लिए इनका ही तन था तो प्यार क्यों नहीं
होगा । स्नेह था और है भी । यह बाप बच्चों की निशानी है । इससे
साकार भी वतन में मुस्करा रहे हैं । बच्चों का स्नेह है तो
क्यों मेरा नहीं । लेकिन वह जानते हैं कि ड्रामा में जो भी
पार्ट होता है वह कल्याण- कारी है । वह विचलित नहीं होते । वह
तो सम्पूर्ण अचल, अडोल,
स्थिर था और है भी । लेकिन आप बच्चों से हजार
गुणा स्नेह उनमें जास्ती है । अब स्नेह का सबूत देना है । यह
भी एक छिपने का खेल है । तो विचार सागर मंथन करो,
हलचल का मंथन न करो । जो शक्ति ली है उनको
प्रत्यक्ष में लाओ । भारत माता शक्ति अवतार अन्त का यही नारा
है । सन शोज फादर । ड्रामा की नूंध करायेगी । साकार बाबा ने
कहा मैं बच्चों से मिलन मनाने आऊंगा । अगर आज आ जाता तो बच्चे
आंसू बहा देते ।
अच्छा !