17-05-69
ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"जादू
मंत्र का दर्पण"
इस अव्यक्त मिलन के मूल्य को जानते हो?
अव्यक्त रूप में मिलना और व्यक्त रूप में
मिलना दोनों में फर्क है । अव्यक्त मिलन का मूल्य है व्यक्त
भाव को छोड़ना । यह मूल्य जो जितना देता है उतना ही अव्यक्त
अमूल्य मिलन का अनुभव करता है । अभी हरेक अपने से पूछे कि हमने
कहाँ तक और कितना समय दिया है । वर्तमान समय अव्यक्त स्थिति
में स्थित होने की ही आवश्यकता है । लेकिन रिजल्ट क्या है वह
हरेक खुद भी जान सकता है । और एक दो के रिजल्ट को भी अच्छी
रीति परख सकते हैं । इसलिए अव्यक्त स्थिति की जो आवश्यकता है
उनको पूरा करना है । अव्यक्त स्थिति की परख आप सभी के जीवन में
क्या होगी, वह मालूम है?
उनके हर कर्म में एक तो अलौकिकता और दूसरा हर
कर्म करते हर कर्मेन्द्रियों से अती- न्द्रिय सुख की महसूसता
आवेगी । उनके नयन, चैन,
उनकी चलन अतीन्द्रिय सुख में हर वक्त रहेगी ।
अलौकिकता और अतीन्द्रिय सुख की झलक उनके हर कर्म में देखने में
आयेगी । जिससे मालूम पड़ेगा यह व्यक्त में होते अव्यक्त स्थिति
में स्थित हैं । अगर यह दोनों ही चीज़ें अपने कर्म में देखते हो
तो समझना चाहिए कि अव्यक्त स्थिति में स्थित हैं । अगर नहीं
हैं तो फिर कमी समझ पुरुषार्थ करना चाहिए । अव्यक्त स्थिति को
प्राप्त होने के लिये शुरू से लेकर एक सलोगन सुनाते आते हैं ।
अगर वह याद रहे तो कभी भी कोई माया के विघ्नों में हार नहीं हो
सकती है । ऐसा सर्वोत्तम सलोगन हरेक को याद है?
हर मुरली में भिन्न-भिन्न रूप से वह सलो- गन
आता ही है । मनमनाभव, हम बाप की सन्तान
हैं, वह तो हैं ही । लेकिन पुरुषार्थ
करते-करते जो माया के विघ्न आते हैं उन पर विजय प्राप्त करने
के लिए कौन-सा सलोगन है? "स्वर्ग का
स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है"
। और संगम के समय बाप का खजाना जन्म सिद्ध अधिकार है । यह
सलोगन भूल गये हो । अधिकार भूल गये हो तो क्या होगा?
हम किस -किस चीजों के अधिकारी हैं । वह तो
जानते हो । लेकिन हमारे यह सभी चीज़ें जन्म सिद्ध अधिकार हैं ।
जब अपने को अधिकारी समझेंगे तो माया के अधीन नहीं होंगे । अधीन
होने से बचने लिये अपने को अधिकारी समझना है । पहले संगमयुग के
सुख के अधिकारी हैं और फिर भविष्य में स्वर्ग के सुखों के
अधिकारी हैं । तो अपना अधिकार भूलो नहीं । जब अपना अधिकार भूल
जाते हो तब कोई न कोई बात के अधीन होते हो और जो पर-अधीन होते
हैं वह कभी भी सुखी नहीं रह सकते । पर-अधीन हर बात में मन्सा,
वाचा, कर्मणा दु :ख की
प्राप्ति में रहते और जो अधिकारी हैं वह अधिकार के नशे और खुशी
में रहते हैं । और खुशी के कारण सुखों की सम्पत्ति उन्हों के
गले में माला के रूप में पिरोई हुए होती है । सतयुगी सुखों का
पता है? सतयुग में खिलौने कैसे होते
हैं? वहाँ रत्नों से खेलेंगे । आप
लोगों ने सतयुगी सुखों की लिस्ट और कलियुगी दु :खो की लिस्ट तो
लगाई है । लेकिन काम के सुखों की लिस्ट बनायेंगे तो इससे भी
दुगुने हो जायेंगे । वही सतयुगी संस्कार अभी भरने हैं । जैसे
छोटे बच्चे होते हैं सारा दिन खेल में ही मस्त होते हैं,
कोई भी बात का फिक्र नहीं होता है इसी रीति हर
वक्त सुखों की लिस्ट, रत्नों की लिस्ट
बुद्धि में दौड़ाते रहो अथवा इन सुखों रूपी रत्नों से खेलते रहो
तो कभी भी ड्रामा के खेल में हार न हो । अभी तो कहाँ-कहाँ हार
भी हो जाती है ।
बापदादा का स्नेह बच्चों से कितना है?
बापदादा का स्नेह अविनाशी है । और बच्चों का
स्नेह कभी कैसा, कभी कैसा रहता है ।
एकरस नहीं है । कभी तो बहुत स्नेहमूर्त देखने में आते हैं ।
कभी स्नेह की मूर्ति की बजाय कौन-सी मूर्त दिखाई पड़ती है?
वा तो स्नेही है वा तो संकटमई । अपने मूर्त को
देखने लिये क्या अपने पास रखना चाहिए?
दर्पण । दर्पण हरेक पास है? अगर दर्पण
होगा तो अपना मुखड़ा देखते रहेंगे और देखने से जो भी कमी होगी
उनको भरते रहेंगे । अगर दर्पण ही नहीं होगा तो कमी को भर नहीं
सकेंगे । इसलिये हर वक्त अपने पास दर्पण रखना । लेकिन यह दर्पण
ऐसा है जो आप समझेंगे हमारे पास है परन्तु बीच-बीच में गायब भी
हो जाता है । जादू मंत्र का दर्पण है । एक सेकेण्ड में गायब हो
जाता है । दर्पण कैसे अविनाशी कायम रह सकता है?
उसके लिये मुख्य क्वालीफिकेशन कौन-सी होनी
चाहिए? जो अर्पणमय होगा उनके पास दर्पण
रहेगा । अर्पण नहीं तो दर्पण भी अविनाशी नहीं रह सकता । दर्पण
रखने लिये पहले अपने को पूरा अर्पण करना पड़ेगा । जिसको दूसरे
शब्दों में सर्वस्व त्यागी कहते हैं । सर्वस्व त्यागी के पास
दर्पण होता है । अव्यक्त मिलन भी वही कर सकता है जो अव्यक्त
स्थिति में हो । वर्त- मान समय अव्यक्त स्थिति में ज्यादा कमी
देखने में आती है । दो बातों में तो ठीक है बाकी तीसरी बात की
कमी है । एक है कथन दूसरा मंथन । यह दो बातें तो ठीक है ना ।
यह दोनों सहज हैं । तीसरी बात कुछ सूक्ष्म है । वर्तमान समय जो
रिजल्ट देखते हैं मंथन से कथन ज्यादा है । बाकी तीसरी बात
कौन-सी है? एक होता है मंथन करना ।
दूसरा होता है मग्न रहना । वह होती है बिल्कुल लवलीन अवस्था ।
तो वर्तमान समय मंथन से भी ज्यादा कथन है । पहला नम्बर उसमें
विजयी है । दूसरा नम्बर मंथन में,
तीसरा नम्बर है मग्न अवस्था में रहना । इस अवस्था की कमी दिखाई
पड़ती है । जिसको भरना है । जो मगन अवस्था में होंगे उन्हों की
चाल-चलन से क्या देखने में आयेगा?
अलौकिकता और अतीन्द्रिय सुख । मग्न अवस्था वाले का यह गुण हर
चलन से मालूम होगा । तो यह जो कमी है उसे भरने का तीव्र
पुरुषार्थ करना है । पुरुषार्थी तो सभी हैं । तब तो यहाँ तक
पहुँचे हैं । लेकिन अभी पुरुषार्थी बनने का समय नहीं है । अभी
तीव्र पुरुषार्थी बनने का समय है । बनना है तीव्र पुरुषार्थी
और बनेंगे पुरुषार्थी तो क्या होगा?
मंजिल से दूर रह जायेंगे । अभी तीव्र पुरुषार्थी बनने का समय
चल रहा है । इससे जितना लाभ उठाना चाहिए उतना उठाते हैं वा
नहीं वह हरेक को चेक करना है । इसलिए कहा है कि अपने पास हरदम
दर्पण रखो तो कमी का झट मालूम होगा । और अपने पुरुषार्थ को
तीव्र करते आगे चलते रहेंगे ।
अच्छा - आज कुमारियों की सर्विस की तिलक का दिन है । जैसे आप
लोगों के म्यूजियम में ताजपोशी का चित्र दिखाया है ना लेकिन आप
की सर्विस की तिलक के दिवस पर देखो कितनी बड़ी सभा इकट्ठी हुई
है । इतनी खुशी होती है?
लेकिन यह याद रखना जितने सभी के आगे तिलक लगा
रहे हो, इतने सभी आप सभी को देखेंगे ।
सभी के बीच में तिलक लग रहा है । यह नहीं भूलना । इतना
हिम्मतवान बनना है । इस तिलक की लाज रखनी है । तिलक की लाज
माना ब्राह्मण कुल की लाज । ब्राह्मण कुल की मर्यादा क्या है,
सुनाया ना । जो ऐसे पुरुषोत्तम बनने की हिम्मत
वाले हैं वह तिलक लगा सकते हैं । यह तिलक साधारण नहीं है ।
वहाँ भी इतनी सारी सभा देखेगी । आप सभी ब्राह्मण इकट्ठे हुए हो
कन्याओं की सर्विस के तिलक पर । सर्विस करने वालों का एक विशेष
गुण का अटेन्शन रखना पड़ता है । जो आलराउन्ड सर्विस करने वाले
होते हैं, उन्हों को विशेष इस बात पर
ध्यान रखना है कि कैसी भी स्थिति हो लेकिन अपनी स्थिति एकरस हो
। तब आलराउन्ड सर्विस की सफलता मिलेगी ।
(दूसरा नम्बर ट्रेनिंग क्लास जिन
कुमारियों का चलना है उन सभी को बापदादा ने टीका दे मुख मीठा
कराया) अच्छा-
आज सभी से नयनों द्वारा मुलाकात कर ली । दूर होते हुए भी यथा
योग्य तथा शक्ति बापदादा के नजदीक हैं ही । भल कोई कितना भी
दूर बैठा हो लेकिन अपने स्नेह से बापदादा के नयनों में समाया
है । इसलिए नूरे रत्न कहते हैं । नूरे रत्नों से आज नयनों की
मुलाकात कर रहे हैं । एक दो से सभी प्रिय है । साकार में समय
प्रति समय बच्चों को यह सूचना तो मिलती ही रही है कि ऐसा समय
आयेगा जो सिर्फ दूर से ही मुलाकात हो सकेगी । अब ऐसा समय देख
रहे हैं । सभी की दिल होती है और बापदादा की भी दिल होती है
लेकिन वह समय अब बदल रहा है । समय के साथ वह मिलन का सौभाग्य
भी अब नहीं रहा है । इसलिये अब अव्यक्त रूप से ही सभी से
मुलाकात कर रहे हैं ।
अच्छा - सभी को नमस्ते और विदाई ।