24-07-69
ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“बिंदु रूप की प्रैक्टिस”
मीठे-मीठे बच्चे किसके सामने बैठे हो?
और क्या होकर बैठे हो?
बाप तो तुम बच्चों को बिन्दी रूप बनाने आये हैं । मैं आत्मा
बिन्दु रूप हूँ । बिन्दी कितनी छोटी होती है और बाप भी कितना
छोटा है । इतनी छोटी सी बात भी तुम बच्चों की बुद्धि में नहीं
आती है? बाप तो बच्चों के सामने ही है
। दूर नहीं । दूर हुई चीज को भूल जाते हो । जो चीज सामने ही
रहती है उस चीज को भूलना यह तुम बच्चों को तो शोभा नहीं देता
है । अगर बच्चे बिन्दी को ही भूल जायेंगे तो बोलो किस आधार पर
चलेंगे? आत्मा के ही तो आधार से शरीर
भी चलता है । मैं आत्मा हूँ यह नशा होना चाहिये कि मैं
बिन्दु-बिन्दु की ही संतान हूँ । संतान कहने से ही स्नेह में आ
जाते हैं । तो आज तुम बच्चों को बिन्दु रूप में स्थित होने की
प्रैक्टिस करायें? मैं आत्मा हूँ,
इसमें तो भूलने की ही आवश्यकता नहीं रहती है ।
जैसे मुझ बाप को भूलने की जरूरत पड़ती है?
हाँ परिचय देने के लिये तो जरुर बोलना पड़ता है
कि मेरा नाम रूप, गुण,
कर्तव्य क्या है । और मैं फिर कब आता हूँ?
किस तन में आता हूँ?
तुम बच्चों को ही अपना परिचय देता हूँ । तो क्या बाप अपने
परिचय को भूल जाते हैं? बच्चे उस
स्थिति में एक सेकेण्ड भी नहीं रह सकते हैं?
तो क्या अपने नाम रूप देश को भी भूल जाते हैं?
यह पहली-पहली बात है जो कि तुम सभी को बताते
हो कि मैं आत्मा हूँ ना कि शरीर । जब आत्मा होकर बिठाते हो तभी
उनको फिर शरीर भी भूलता है । अगर आत्मा होकर नहीं बिठाते हो तो
क्या फिर देह सहित देह के सभी सम्बन्ध भूल जाते । जब उनको
भुलाते हो तो क्या अपने शरीर से न्यारा होकर,
जो न्यारा बाप है,
उनकी याद में नहीं बैठ सकते हो?
अब सब बच्चे अपने को आत्मा समझ कर बैठो,
सामने किसको देखें?
आत्माओं के बाप को । इस स्थिति में रहने से व्यक्त से न्यारे
होकर अव्यक्त स्थिति में रह सकेंगे । मैं आत्मा बिन्दु रूप हूँ,
क्या यह याद नहीं आता है?
बिन्दी रूप होकर बैठना नहीं आता?
ऐसे ही अभ्यास को बढ़ाते जाओगे तो एक सेकेण्ड
तो क्या कितने ही घंटों इसी अवस्था में स्थित होकर इस अवस्था
का रस ले सकते हो । इसी अवस्था में स्थित रहने से फिर बोलने की
जरूरत ही नहीं रहेगी । बिन्दु होकर बैठना कोई जड़ अवस्था नहीं
है । जैसे बीज में सारा पेड़ समाया हुआ है वैसे ही मुझ आत्मा
में बाप की याद समाई हुई है? ऐसे होकर
बैठने से सब रसनायें आयेंगी । और साथ ही यह भी नशा होगा कि हम
किसके सामने बैठे हैं! बाप हमको भी अपने साथ कहाँ ले जा रहे
हैं! बाप तुम बच्चों को अकेला नहीं छोड़ता है । जो बाप का और
तुम बच्चों का घर है, वहाँ पर साथ में
ही लेकर जायेंगे । सब इकट्ठा चलने ही है । आत्मा समझकर फिर
शरीर में आकर कर्म भी करना है । परन्तु कर्म करते हुये भी
न्यारा और प्यारा होकर रहना है । बाप भी तुम बच्चों को देखते
हैं । देखते हुए भी तो बाप न्यारा और प्यारा है ना ।
अच्छा !!!