20-10-69 ओम शान्ति
अव्यक्त
बापदादा मधुबन
“बिन्दु और सिन्धु की स्मृति से सम्पूर्णता”
आज किस संगठन में बाप-दादा आए है?
आज के संगठन को क्या कहेंगे?
आज का संगठन है ज्ञान सूर्य और सितारों का । हरेक सितारा
अपनी-अपनी चमक दिखाने वाला है । बाप-दादा हरेक सितारे की चमक
देखने के लिये आये है । आप सभी इस भट्ठी में आये हो तो अपने को
क्या बनाने के लिये आये हो?
मालूम है भट्ठी से क्या बनकर निकलना है?
(फरिश्ता) फरिश्ता नहीं हो?
इस भट्ठी में सम्पूर्णता का ठप्पा लगाकर
निकलेंगे । अभी फरिश्ते बनने के पुरुषार्थी हो । लेकिन
सम्पूर्णता में जो कमी है, उसी कमी को
इस भट्ठी में स्वाहा करने के लिये आये हो । ऐसे हो ना?
कमियों को दूर करने के लिये क्या बात याद
रखेंगे? जिससे सम्पूर्णता का पूरा ही
छाप लगाकर जायेंगे? आज बाप-दादा बहुत
सहज बात सुनाते हैं । बहुत सहज ते सहज यही बात याद रखना है कि
मैं बिन्दु हूँ और बाप भी बिन्दु है,
लेकिन बिन्दु के साथ-साथ सिन्धु है । तो बिन्दु और सिन्धु यह
बाप और बच्चे का परिचय है । दो शब्द भी अगर याद रखो तो
सम्पूर्णता सहज आ सकती है । स्कूल में छोटे बच्चों को जब पढ़ाते
है तो पहले-पहले क्या सिखलाते है? पहले
तो बिन्दु ही लिखेंगे । फिर आगे बढ़ते है तो एक वा अल्फ सिखलाते
है । तो यह भी एक बिन्दु । फिर आगे बढ़ते है तो बिन्दु की याद
एक, उस एक में ही सभी बातें आ जाती है
। एक की याद और एकरस अवस्था एक की ही मत और एक के ही कर्तव्य
में मददगार । अगर एक-एक बात ही याद रखे तो बहुत ही अपने को आगे
बढ़ा सकते हैं । सिर्फ बिन्दु और एक,
उसके आगे विस्तार में जाने की दरकार नहीं । विस्तार में जाना
है तो सिर्फ सर्विस प्रति । अगर सर्विस नहीं तो बिन्दु और एक।
उसके आगे अपनी बुद्धि को चलाने की इतनी आवश्यकता नहीं है ।
सिर्फ यही बातें याद रखो तो सहज सम्पूर्णता को पा सकते हो ।
सहज है वा मुश्किल है? सहज मार्ग है
लेकिन सहज को मुश्किल कौन बनाता है । (संस्कार) यह संस्कार भी
उत्पन्न क्यों होते है? सिर्फ अपनी
विस्मृति इन सब बातों को उत्पन्न करती है । चाहे पिछले संस्कार
चाहे, पिछले कर्म बन्धन चाहे,
वर्तमान की भूले जो भी कुछ होता है । उनका मूल
कारण अपनी विस्मृति है । अपनी विस्मृति के कारण यह सभी व्यर्थ
बातें सहज को मुश्किल बना देती है । स्मृति रहने से क्या होगा?
जो लक्ष्य रख करके आये हो स्मृति सम्पूर्ण
विस्मृति असम्पूर्ण । विस्मृति है तो बहुत ही विघ्न है । और
स्मृति है तो सहज और सम्पूर्णता । जो बातें सुनाई अगर इस
स्मृति को मजबूत करते जाओ तो विस्मृति आपे ही भाग जायेगी ।
स्मृति को छोडेंगे ही नहीं तो विस्मृति कहाँ से आयेगी ।
सूर्यास्त हो जाता है तब अंधियारा हो जाता है । सूर्यास्त ही
ना हो तो अंधियारा कैसे आवे? वैसे ही
अगर स्मृति का सूर्य सदा कायम रखेंगे तो विस्मृति का अंधियारा
आ नहीं सकता । यह अलौकिक ड्रिल जानते हो?
वैसे भी अभी वह जो ड्रिल करते हैं,
वह तन्दुरुस्त रहते हैं । तन्दुरुस्ती के
साथ-साथ शक्तिशाली भी रहते है तो यह अलौकिक ड्रिल जो जितनी
करता है उतना ही तन्दुरुस्त अर्थात् माया की व्याधि नहीं आती
और शक्ति स्वरुप भी रहता है । जितना-जितना यह अलौकिक बुद्धि की
ड्रिल करते रहेंगे उतना ही जो लक्ष्य है बनने का,
वह बन पावेंगे । ड्रिल में जैसे ड्रिल मास्टर
कहता है वैसे हाथ-पाँव चलाते है ना । यहाँ भी अगर सभी को कहा
जाये एक सेकेण्ड में साकारी से निराकारी बन जाओ तो बन सकेंगे?
जैसे स्कूल शरीर के हाथ-पाँव झट डायरेक्शन
प्रमाण-ड्रिल में चलाते रहते है, वैसे
एक सेकेण्ड में साकारी से निराकारी बनने की प्रैक्टिस है?
साकारी से निराकारी बनने में कितना समय लगता
है? जबकि अपना ही असली स्वरूप है फिर
भी सेकेण्ड में क्यों नहीं स्थित हो सकते?
अब तक कर्मबन्धन?
क्या अब तक भी कर्मबन्धन की आवाज सुनते रहेंगे?
जब यह पुराना शरीर छोड़ देंगे तब तक कर्मबन्धन
सुनते रहेंगे ।
इस क्लास में प्रश्र का उत्तर देने वाले कौन हैं?
वह तो बहुत नाम सुनाये,
फिर प्रश्र-उत्तर से पार जाने वाले कौन हैं?
इस भट्ठी में परखने की पावर आयेगी । हरेक को
यही कोशिश करनी चाहिए कि हम सम्पूर्ण बनकर ही जायेंगे ऐसे अब
हो सकता है? वा अंत में होगा (हो सकता
है) तो बाकी अंत तक रहकर क्या करेंगे? (प्रजा
बनायेंगे) स्वयं राजा, ताजधारी बन
जायेंगे और दूसरों को प्रजा बनायेंगे । आप समान भी बनाना है ।
प्रजा भी बनानी है । नहीं तो प्रजा बिगर राज्य किस पर करेंगे?
तो ऐसे समझे कि इतने सभी सितारे सम्पूर्ण बन
करके ही जायेंगे । यही उमंग और निश्चय हरेक में होना आवश्यक है
कि हम सम्पूर्ण बने और सर्व को बनायेंगे । यही उमंग-उत्साह
सदा कायम रहे तो अवश्य ही लक्ष्य की प्राप्ति हो जायेगी । और
बाप-दादा को निश्चय है ऐसे सम्पूर्ण ही इस यज्ञ कुण्ड से
निकलेंगे । कुण्ड का यादगार देखा है?
यह तो जो भी स्थान है सभी यह ही है लेकिन फिर भी यज्ञ कुण्ड का
महत्व होता है । वैसे भी देखा होगा गंगा और यमुना दोनों का
महत्व है लेकिन फिर भी काम का महत्व ज्यादा है । वहाँ नहाना
श्रेष्ठ माना जाता है । गंगा-यमुना तो बहुत स्थानों पर होती है
लेकिन फिर भी विशेष काम पर नहाने क्यों जाते है?
उनका विशेष महत्व क्या है?
काम के महत्व को अच्छी तरह से जानते हो ना ।
जैसे विशेष स्थानों का विशेष महत्व होता है,
इसी प्रकार मधुबन की भट्ठी का भी विशेष महत्व
है । इस भट्ठी से सम्पूर्णता की सौगात बाप द्वारा मिलती है ।
यह मिलन का अर्थात् संगम का विशेष सौभाग्य बच्चों को मिलता है,
यह मिलन ही सम्पूर्णता की सौगात के रूप में है
। इस मिलन का ही यह काम यादगार है । तो यह मिलना ही सम्पूर्णता
की सौगात है । भट्ठी से सम्पूर्ण बनने का तो छाप वा ठप्पा
लगाकर ही जायेंगे लेकिन उसके साथ-साथ इस भट्ठी में हिसाब करना
भी अच्छी रीति सीखना है । कहाँ-कहाँ हिसाब पूरा न करने के कारण
जहाँ प्लस करना है वहाँ माइनस कर लेते है । जहाँ माइनस करना है
वहाँ प्लस कर लेते है इसलिए स्थिति डगमग होती है । यह हिसाब भी
पूरा सीखना है कि किस बात में जोड़ना है और किस बात में कट करना
है? प्रवृत्ति में रहने के कारण जहाँ
ना जोड़ना वहाँ भी जोड़ लेते है और जहाँ काटना ना हो वहाँ भी काट
लेते है । यह छोटा--सा हिसाब बड़ी समस्या का रूप हो जाता है
इसलिए यह भी पूरा-पूरा सीखना है कि प्रवृत्ति में रहते हुए भी
क्या तोड़ना है क्या जोड़ना है । और जोड़ना भी है तो कहाँ तक और
किस रूप में? आपको भट्ठी में बुलाया है
तो उसका कार्य भी बतायेंगे ना । कौन-कौन सी पढ़ाई की सबजेक्ट
में परिपक्व होना है? एक तो अलौकिक
ईथरीय ड्रिल की सबजेक्ट और दूसरी यह हिसाब करना,
दोनों ही बातें इस भट्ठी में सीखनी है । अगर
इन दोनों बातों में सम्पूर्ण बन गये तो बाकी क्या रहेगा ।
सम्पूर्ण तो बन कर ही निकलेंगे । खुद तो बन जायेंगे लेकिन औरों
को बनाने का कार्य भी बाकी रहेगा । इसी निमित्त ही जाना है ।
सम्बन्ध के कारण नहीं जाना है । लेकिन सर्विस के निमित्त जाना
है । जाना भी है तो सिर्फ सर्विस के निमित्त । जहाँ भी रहो
लेकिन अपने को ऐसा समझकर रहेंगे तो अवस्था न्यारी और प्यारी
रहेगी । जैसे बाप-दादा सर्विस के निमित्त आते जाते हैं ना । तो
आप सभी को भी सिर्फ सर्विस के अर्थ निमित्त जाना है और सर्विस
की सफलता पाकर के फिर सम्मुख आना है ।
अव्यक्त वतन से वर्तमान समय बाप-दादा हर बच्चे को कौन सा
मन्त्र देते है?
गो सून कम सून सर्विस प्रति जाओ और साथी बन
करके जल्दी आओ । फिर जाओ । जब यहाँ गो सून कम सून होंगे तब
बुद्धि द्वारा भी जल्दी होंगे । बुद्धि की ड्रिल भी गो सून कम
सून है ना । वह स्थिति तब होगी जब यह स्कूल मन्त्र याद रखेंगे
। इस मन्त्र से उस मन्त्र का सम्बन्ध है । तब तो बताया यह
कुण्ड का महत्व है । यहाँ आपको सौगात के रूप में मिलती है वहाँ
पुरुषार्थ रूप में । तो यह कुण्ड का विशेष महत्व हुआ ना । यहाँ
वरदान वहाँ मेहनत । जब वरदान मिल सकता है तो मेहनत क्यों करते
है । इस यश कुण्ड से भाषा बोलना भी सीखकर जाना है । ऐसा सैम्पल
बनना है जो आपको देख दूसरे भी आकर्षित होकर यज्ञ कुण्ड में
स्वाहा हो जाये ।
बाप-दादा हरेक की तस्वीर से हरेक की तकदीर और तदबीर देखते है
कहाँ तक अपनी तकदीर बनाते है । आप भी जब किसको देखते हो तो
हरेक की तस्वीर से उनकी तदबीर,
उनके पुरुषार्थ का जो विशेष गुण है,
वही देखना है । हर एक के पुरुषार्थ में विशेष
गुण जरुर होता है । उस गुण को देखना है । एक होता है गुण और
गुण के साथ-साथ फिर होता है गुणा । शब्द कितना नजदीक है लेकिन
वह क्या, वह क्या । अगर गुण नहीं देखते
हो तो गुणा लग जाता है । तो हरेक के गुण को देखना है तो गुणा
जो लगता है वह खत्म हो जायेगा ।
जो एक दो के स्नेही होते है । ऐसे स्नेही बच्चों से बाप-दादा
का भी अति-स्नेह है, स्नेह ही समीप लाता है । जितना स्नेही
उतना समीप तो एक दो में स्नेही हो? ऐसे स्नेही बच्चे ही समीप
भी आ सकते है अब भी और भविष्य में भी । विशेष स्नेही है इसलिये
आज विशेष डबल टीका लगा रहे है । लेकिन अनोखा, लौकिक रीति का
टीका नहीं । डबल टीका कौन सा है? एक तो निराकारी दूसरा
न्यारापन । यह डबल टीका हरेक के मस्तिष्क पर अविनाशी स्थित
कराने के लिये अविनाशी रूप से ही लगा रहे है । यह अविनाशी टीका
सदा कायम रहता है? तिलक को सुहाग की निशानी कहा जाता है इस
तिलक को सदा कायम रखने की कोशिश करनी है । जितना- जितना
परिपक्व रहेंगे उतना पद पा सकेंगे । हरेक यही सोचे कि हम ही
नम्बर वन है । अगर हरेक नम्बर वन होंगे तो नम्बर टू कौन
आयेंगे? बाप की क्लास में कभी भी नम्बर नहीं निकल सकते । टीचर
भी नम्बर वन स्टूडेन्ट भी नम्बर बन । तो एक-एक नम्बरवन । तो
ऐसी क्लास का तो मधुबन में चित्र होना चाहिये ।