22-01-70              ओम शान्ति                        अव्यक्त बापदादा         मधुबन 


“अंतिम कोर्स – मन के भावों को जानना” – २२-०१-१९७०

सभी कहाँ बैठे हो और क्या देख रहे हो ?  अव्यक्त स्थिति में स्थित हो अव्यक्त रूप को देख रहे हो व व्व्यक्त में अव्यक्त को देखने का प्रयत्न करते हो ?  इस दुनिया में आवाज़ हैं |  अव्यक्त दुनिया में आवाज़ नहीं है |  इसलिए बाप सभी बच्चों को आवाज़ से परे ले जाने की ड्रिल सिखला रहे हैं |  एक सेकंड में आवाज़ में आना एक सेकंड में आवाज़ से परे हो जाना ऐसा अभ्यास इस वर्तमान समय में बहुत आवश्यक है |  वह समय भी आएगा |  जैसे – जैसे अव्यक्त स्थिति में स्थित होते जायेंगे वैसे-वैसे नयनों के इशारों से किसके मन के भाव जान जायेंगे |  कोई से बोलने व सुनने की आवश्यकता नहीं होगी |  ऐसा समय अब आनेवाला है |  जैसे बप्प्दादा के सामने जब आते हो तो बिना सुनाये हुए भी आप सभी के मन के संकल्प मन के भावों को जान लेते हैं |  वैसे ही आप बच्चों को भी यही अंतिम कोर्स पढना है |  जैसे मुख की भाषा कही जाती है व्वैसे ही फिर रूहों की रूहान होती है |  जिसे रूह-रहन कहते हैं |  तो रूह भी रूह से बातें करते हैं |  लेकिन कैसे ?  क्या रूहों की बातें मुख से होती है ?  जैसे जैसे रूहानी स्थिति में स्थित होते जायेंगे वैसे-वैसे रूह रूह की बात को ऐसे ही सहज और स्पष्ट जान लेंगे |  जैसे इस दुनिया में मुख द्वारा वर्णन करने से एक दो के भाव जानते हो  |  तो इसके लिए किस बात की धरना की आवश्यकता है ?  विशेष इस बात की आवश्यकता है जो सदैव बुद्धि की लाइन क्लियर हो |  कोई भी अपने बुद्धि में व मन डिस्टर्बेंस होगा वा लाइन क्लियर न होगी तो एक दो के संकल्प और भाव को जान नहीं सकेंगे |  लाइन क्लियर न होने के कारण अपने संकल्पों की मिक्सचैरिटी हो सकती है |  इसलिए हरेक को देखना चाहिए कि हमारी बुद्धि की लाइन क्लियर हैं ?  बुद्धि में कोई भी किसी भी प्रकार का विघ्न तो नहीं सताता है ?  अटूट, अटल, अथक यह तीनों ही बातें जीवन में हैं |  अगर इन तीनों में से एक बात में भी कमी है तो समझना चाहिए कि बुद्धि की लाइन क्लियर नहीं है |  जब बुद्धि की लाइन क्लियर हो जाएगी तो उसकी स्थिति, स्मृति क्या होगी ?  जितनी-जितनी बुद्धि की लाइन अर्थात् पुरुषार्थ की लाइन क्लियर होगी उतना-उतना क्या स्मृति में रहेगा ?  कोई भी बात में उनके सामने भविष्य ऐसा ही स्पष्ट होगा जैसे वर्तमान स्पष्ट होता है |  उनके लिए वर्तमान और भविष्य एक समान हो जायेंगे |  जैसे आजकल साइंसदानों ने कहाँ-कहाँ की बातों को इतना स्पष्ट दिखाया है जो दूर की चीज़ भी नज़दीक नज़र आती है |  इसी रीति से जिनका पुरुषार्थ क्लियर होगा उनको भविष्य की हर बात दूर होते भी नजदीक दिखाई पड़ेगी |  जैसे आजकल टेलीविज़न में देखते हैं तो सभी स्पष्ट दिखाई पड़ता हैं ना |  तो उनकी बुद्धि और उनकी दृष्टि टेलीविज़न की भांति सभी बातें स्पष्ट देखेंगी और जानेंगी |  और कोई भी बात में पुरुषार्थ की मुश्किलात नहीं रहेगी |  तो वह अनुभव, वह अंतिम स्थिति की परख अपने आप में देखो कि कहाँ तक अंतिम स्थिति के नज़दीक हैं |  जैसे सूर्य अपने जब पुरे प्रकाश में आता है तो हर चीज़ स्पष्ट देखने में आती है |  जो अन्धकार है, धुंध है वह सभी ख़त्म हो जाता है |  इसी रीति जब सर्वशक्तिवान ज्ञान सूर्य के साथ अटूट सम्बन्ध है तो अपने आप में भी ऐसे ही हर बात स्पष्ट देखने में आएगी |  और जो चलते-चलते पुरुषार्थ में माया का अन्धकार व धुंध आ जाता है, जो सत्य बात को छिपानेवाले हैं, वह हट जायेंगे |  इसके लिए सदैव दो बातें याद रखना |  आज के इस अलौकिक मेले में जो सभी बच्चे आये हैं |  वह जैसे लौकिक बाप अपने बच्चों को मेले में ले जाते हैं तो जो स्नेही बच्चे होते हैं उनको कोई-न-कोई चीज़ लेकर देते हैं |  तो बापदादा भी आज के इस अनोखे मेले में आप सभी बच्चों को कौन सी अनोखी चीज़ देंगे ?

आज के इस मधुर मिलन के मेले को यादगार बापदादा क्या दे रहे हैं कि सदैव शुभ चिन्तक और शुभ चिंतन में रहना |  शुभ चिंतन और शुभ चिन्तक |  यह दो बातें सदैव याद रखना |  शुभ चिंतन से अपनी स्थिति बना सकेंगे और शुभचिन्तक बनने से अनेक आत्माओं की सेव्व करेंगे |  तो आज यह वतन से, आये हुए सभी बच्चों के प्रति अविनाशी सौगात है |  बापदादा का स्नेह अधिक है व बच्चों का अधिक है ?  कोई कोई बच्चे सोचते होंगे कि हम सभी का स्नेह बापदादा से ज्यादा है |  कोई-कोई हैं भी लेकिन मेजोरिटी नहीं |  स्नेह है लेकिन अटूट और एक रस स्नेह नहीं है |  बच्चों का स्नेह रूप बदलता बहुत है |  बापदादा का स्नेह अटूट और एकरस रहता है |  तो अब बताओ कि किसका स्नेह ज्यादा है ?  बापदादा बच्चों को देखते हैं तो त्रिनेत्री होने से तीन रूपों से देखते हैं |  वह कौन से ३ रूप ?  जैसे आप बच्चे बाप को तीन रूपों से देखते हो न |  तो वह सभी जानते हैं |  लेकिन बाप  बच्चों को तीन रूप से देखते हैं- एक तो पुरुषार्थी रूप, दूसरा अब संगम का भविष्य जो फ़रिश्ता रूप है और तीसरा भविष्य देवता रूप |  तीनों का साक्षात्कार होता रहता है |  तीनों ही रूप एक-एक ऐसे ही स्पष्ट देखने में आते हैं जैसे वर्तमान यह देह का रूप इन आँखों से स्पष्ट देखने में आता है |  इस रीति दिव्व्य नेत्र द्वारा यह तीनों रूप स्पष्ट देखने में आते हैं |  जैसे इन आँखों से देखि हुई चीज़ का वर्णन करना सहज होता है न |  सुनी हुई बातों का वर्णन करना कुछ मुश्किल होता है लेकिन देखी हुई बात का वर्णन करना सहज होता है और स्पष्ट होता है |  तो इन दिव्य नेत्रों वा अव्यक्त नेत्रों द्वारा हरेक के तीनों रूप भी इतना ही सहज वर्णन करना होता है |  वैसे ही आप सभी को भी एक दो के यह तीनों रूप देखने में आएंगे |  अभी यथायोग्य, यथाशक्ति है |  लेकिन कुछ समय बाद यह यथा शक्ति शब्द भी ख़त्म हो जायेगा |  और हरेक अपने अपने नंबर प्रमाण सम्पूर्णता को प्राप्त हो जायेंगे |  तो बापदादा आप सभी के सम्पूर्ण मुखड़े देखते हैं |  सम्पूर्णता नंबरवार होगी |  माला के १०८ मणके जो हैं, तो नंबर वार मणका और एक सौ आठवाँ मणका दोनों को सम्पूर्ण कहेंगे कि नहीं ?  विजयी रत्न कहेंगे ?  विजयी रत्न अर्थात् अपने नंबर प्रमाण सम्पूर्णता को प्राप्त हो |  उनके लिए सारे ड्रामा के अन्दर वाही सम्पूर्णता की फर्स्ट स्टेज है |  जैसे सतयुग में विश्व महाराजन तो ८वाँ भी कहलायेगा लेकिन फर्स्ट विश्व-महाराजन की सृष्टि के सम्पूर्ण सुख और ८वें के सम्पूर्णता के सुख में अंतर होगा ना |  वैसे ही यहाँ भी हरेक अपने-अपने नंबर प्रमाण सम्पूर्णता को प्राप्त हो रहे हैं |  इसलिए बापदादा सम्पूर्ण स्टेज को देखते रहते और वर्तमान समय के पुरुषार्थ को देखते रहते हैं |  क्या हैं और क्या बनने वाले हैं |

आप ने पूछा ना कि वतन में क्या बैठ करते हो ?  यही देखते रहते हैं और अव्यक्ति सहयोग देने की सर्विस करते हैं |  सभी समझते हैं कि बापदादा वतन में पता नहीं क्या बैठ करते होंगे |  लेकिन सर्विस की स्पीड साकार वतन से वहां तेज़ है |  क्योंकि यहाँ तो साकार तन का भी हिसाब साथ था |  अब तो इस बंधन से भी मुक्त हैं, अपने प्रति नहीं है सर्व आत्माओं के प्रति हैं |  जैसे इस शरीर को छोड़ना और शरीर को लेना यह अनुभवव सभी को है, वैसे ही जब चाहो तब शरीर का भान बिलकुल छोड़कर अशरीरी बन जाना और जब चाहो तब शरीर आधार लेकर कर्म करना यह अनुभव है ?  इस अनुभव को अब बढ़ाना है |  बिलकुल ऐसे ही अनुभव होगा जैसे कि स्थूल चोला अलग है और छोले को धारण करनेवाली आत्मा अलग है, यह अनुभव अब जयादा होना चाहिए |  सदैव यही याद रखो कि अब गए कि गए |  सिर्फ सर्विस के निमित्त शारीर का आधार लिया हुआ है लेकिन जैसे ही सर्विस समाप्त हो वैसे ही अपने को एकदम हल्का कर सकते हैं |  जैसे आप लोग कहाँ भी ड्यूटी पर जाते हो और फिर वापस घर आते हो तो अपने को हल्का समझते हो ना |  ड्यूटी की ड्रेस बदलकर घर की ड्रेस पहन लेते हो वैसे ही सर्विस प्रति यह शरीर रूपी वस्त्र का आधार लिया फिर सर्विस समाप्त हुई और इन वस्त्रों के बोझ से हल्के और न्यारे हो जाने का प्रयत्न करो |  एक सेकंड में छोले से अलग कौन हो सकेंगे ?  अगर टाइटनेस होगी तो अलग हो नहीं सकेंगे |  कोई भी चीज़ अगर चिपकी हुई होती है तो उनको खोलना मुश्किल होता है |  हल्के होने से सहज ही अलग हो जाता है |  वैसे ही अगर अपने संस्कारों में कोई भी इजीपण नहीं होगा तो फिर अशरीरीपन का अनुभव कर नहीं सकेंगे |  सुनाया था ना कि क्या बनना है |  इजी और अलर्ट, ऐसे रहनेवाले ही इस अभ्यास में रह सकेंगे |  बापदादा बच्चों को कोई नया नहीं देख रहे हैं |  क्योंकि जब कि तीनों ही कालों को जानते हैं तो नया कैसे कहेंगे |  इसलिए सभी अति पुराने हैं |  कितना पुराने हैं वह हिसाब नहीं निकाल सकते |  तो अपने को नया नहीं समझना |  अति प्पुराने हैं और वही पुराने अब फिर से अपना हक़ लेने के लिए आये हैं |  यह नशा सदैव कायम रहे |  यह भी कभी नहीं बोलना कि पुरुषार्थ करेंगे, देखेंगे |  नहीं |  जो लास्ट आये हैं उनको यही सोचना है कि हम फ़ास्ट जायेंगे |  अगर फ़ास्ट का लक्ष्य रखेंगे तो पुरुषार्थ भी ऐसे ही होगा |  इसलिए कभी भी यह नहीं सोचना कि हम लोग तो पीछे आये हैं तो प्रजा बन जायेंगे |  नहीं |  पीछे आनेवालों को भी अधिकार है राज्य पद पाने का |  अच्छा |

अव्यक्त मुलाकात भी मिलन ही है |  इसलिए सभी को यही निश्चय रखना है कि हम राज्य पद लेकर ही छोड़ेंगे |  हम नहीं बनेंगे तो कौन बनेंगे |  कोटों में कोई कौन-सी आत्मा गिनी जाती हैं ?  ऐसे कोटों में से कोई हम आत्माएं ड्रामा के अन्दर हैं |  यह अपना निश्चय नहीं भूलना |  बापदादा सभी बच्चों का भविष्य देख हर्षित होते हैं |  एक एक से मिलना, मन की बात तो यह है |  लेकिन आप सबके समान इस व्यक्त दुनिया में |  |  |  बापदादा को अभी यह व्यक्त दुनिया नहीं है |  तो आप के दुनिया के प्रमाण समय हो भी देखना पड़ता है |  वतन में समय नहीं होता |  घडी नहीं होती |  लेकिन इस व्यक्त दुनिया में यह सभी बातें देखनी पड़ती है |  वहां तो जब सूर्य, चाँद ही नहीं तो रात दिन किस हिसाब से हो |  इसलिए समय का बंधन नहीं है |