23-01-70              ओम शान्ति                        अव्यक्त बापदादा         मधुबन 


सेवा में सफलता पाने की युक्तियाँ २३-०१-१९७०

ऐसे अनुभव करते हैं जैसे कि सर्विस के कारण मज़बूरी से बोलना पड़ता है ?  लेकिन सर्विस समाप्त हुई तो आवाज़ की स्थिति भी समाप्त हो जाएगी (बम्बई की एक पार्टी बापदादा से बम्बई में होनेवाले सम्मेलन के लिए डायरेक्शन ले रही थी) यह जो आजकल की सर्विस कर रहे हो उसमे विशेषता क्या चाहिए ?  भाषण तो वर्षों कर ही रहे हो लेकिन अब भाषणों में भी क्या अव्यक्त स्थिति भरनी है ?  जो बात करते हुए भी सभी ऐसे अनुभव करें कि यह तो जैसे कि अशरीरी, आवाज़ से परे न्यारे स्थिति में स्थित होकर बोल रहे हैं |  अब इस सम्मलेन में यह नवीनता होनी चाहिए |  यह स्पीकर्स और ब्राह्मण स्पीकर्स दूर से ही अलग देखने में आयें |  तब है सम्मेलन की सफ़लता |  कोई अनजान भी सभा में प्रवेश करे तो दूर से ही महसूस करे कि अनोखे बोलनेवाले हैं |  सिर्फ वाणी का जो बल है व तो कनरस तक रह जाता है |  लेकिन अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर जो बोलना होता है वह सिर्फ़ कनरस नहीं लेकिन मनरस भी होगा |  कनरस सुनानेवाले तो बहुत हैं लेकिन मनरस देने वाला अब तक दुनिया में कोई नहीं है |  बाप तो तुम बच्चों के सामने प्रत्यक्ष हुआ लेकिन तुम बच्चों को फिर बहार प्रत्यक्ष होना है |  तो यह सम्मेलन कोई साधारण रीति से नहीं होना है |  मीटिंग में भी बोलना – कि चित्रों में भी चैतन्यता हो |  जैसे चैतन्य व्यक्त भाव को स्पष्ट करते हैं वैसे ही चित्र चैतन्य बनकर साक्षात्कार करायें |  जब चित्र में चैतन्यता का भाव प्रत्यक्ष होता है, वाही चित्र अच्छा लगता है |  बहार की आर्ट की बात नहीं है लेकिन बहार के साथ अन्दर भी ऐसा ही हो |  बापदादा यही नवीनता देखना चाहते हैं |  कम बोलना भी कर्त्तव्य बड़ा कर दिखाए |  यही ब्राह्मणों की रीति रस्म है |  यह सम्मेलन अनोखा कैसे हो यह ख्याल रखना है |  चित्रों में भी अव्यक्ति चैतन्यता हो |  जो दोर्र से ही ऐसी महसूसता आये |  नहीं तो इतनी प्रजा कैसे बनेगी |  सिर्फ़ मुख से नहीं लेकिन आन्तरिक स्थिति से जो प्रजा बनेगी उसे ही आन्तरिक सुख का अनुभव कहा जाता है |  आप लोगों ने अब तक रिजल्ट देखि कि जो अव्यक्त स्थिति के अनुभव से आये वह शुरू से ही सहज चल रहे हैं, निर्विघ्न है |  और जो अव्यक्त स्थिति के साथ फिर और भी कोई आधार पर चले हैं उन्ही के बिच में विघ्न, मुश्किलातें आदि कठिन पुरुषार्थ देखने में आता हैं |  इसलिए अभी ऐसी प्रजा बनानी है जो अव्यक्त शक्ति की फाउंडेशन से बहुत थोड़े समय में और सहज ही अपने लक्ष्य को प्राप्त हो |  जितना खुद सहज पुरुषार्थी होंगे, अव्यक्त शक्ति में होंगे उतना ही औरों को भी आप समान बना सकेंगे |  तो इस सम्मेलन की रिजल्ट देखनी है |  टॉपिक तो कोई भी हो लेकिन स्थिति टॉप की चाहिए |  अगर टॉप की स्थिति है तो टॉपिक्स को कहाँ भी मोड़ सकते हो |  अब भाषण पर नहीं लेकिन स्थिति पर सफलता का आधार कहा जाता है |  क्योंकि भाषण अर्थात् भाषा की प्रवीणता तो दुनिया में बहुत है |  लेकिन आत्मा में शक्ति का अनुभव करानेवाले तो तुम ही हो |  तो यही अभी नवीनता लानी है |  जब भी कोई कार्य करते हो तो पहले वायुमण्डल को अव्यक्त बनाना आवश्यक है |  जैसे और सजावट का ध्यान रखते हो वैसे मुख्य सजावट यह है |  लेकिन क्या होता है ?  चलते-चलते उस समय बहर्मुखता अधिक हो जाती है तो जो लास्ट वायुमण्डल होने के कारन रिजल्ट वह नहीं निकलती |  आप लोग सोचते बहुत हो, ऐसे करेंगे, यह करेंगे |  लेकिन लास्ट समय कर्त्तव्य ज्यादा देख बाहरमुखता में आ जाते हो |  वैसे ही सुनने वाले भी उस समय तो बहुत अच्छा कहते हैं परन्तु फिर झट बाहरमुखता में आ जाते हैं |  इसलिए ऐसा ही प्रोग्राम रखना है जो कोई भी आये तो पहले अव्यक्त प्रभाव का अनुभव हो |  यह है सम्मेलन की सफलता का साधन |  कुछ दिन पहले से ही यह वायुमण्डल बनाना पड़े |  ऐसे नहीं कि उसी दिन सिर्फ करना है |  वायुमंडल को शुद्ध करेंगे तब कुछ नवीनता देखने में आएगी |  साकार शरीर में भी अलौकिकता दूर से ही देखने में आती थी ना |  तो बच्चों के भी इस व्यक्त शरीर से अलौकिकता देखने में आये |

प्रेस कांफ्रेंस की रिजल्ट अगर अछि है तो करने में कोई हर्जा नहीं है |  लेकिन पहले उन्हों से मिलकर उन्हीं को मददगार बनाना – यह तो बहुत ज़रूरी है |  समय पर जाकर उन्हों से काम निकालना और समय के पहले उन्हों को मददगार बनाना इसमें भी फर्क पड़ता है |  बहुत करके समय पर अटेंशन जाता है |  अभी अपनी बुद्धि की लाइन को क्लियर करेंगे तो सभी स्पष्ट होता जायेगा |  जैसे आप लोगों का प्रदर्शनी में है ना – स्विच ऑन करने से जवाब मिलता है |  वैसे ही पुरुषार्थ की लाइन क्लियर होने से संकल्प का स्विच दबाया और किया |  ऐसा अनुभव करते जायेंगे |  सिर्फ व्यर्थ संकल्पों की कंट्रोलिंग पॉवर चाहिए |  व्यर्थ संकल्प चलने के कारण जो ओरिजिनल बापदादा द्वारा प्रेरणा कहें वा शुद्ध रेस्पोंस मिलता है वह मिक्स हो जाता है क्योंकि व्यर्थ संकल्प अधिक होते हैं |  अगर व्यर्थ संकल्पों को कण्ट्रोल करने की पॉवर है तो उसमें एक वही रेस्पोंस स्पष्ट देखने में आता हैं |  वैसे ही अगर बुद्धि ट्रांसलाइट है तो उसमे हर बात का रेस्पोंस स्पष्ट होता जाता है और यथार्थ होता है |  मिक्स नहीं |  जिनके व्यर्थ संकल्प नहीं चलते वह अपने अव्यक्त स्थिति को ज्यादा बढ़ा सकते हैं |  शुद्ध संकल्प भी चलने चाहिए |  लेकिन उनको भी कण्ट्रोल करने की शक्ति होनी चाहिए |  व्यर्थ संकल्पों का तूफ़ान मेजोरिटी में ज्यादा है |

कोई कभी कार्य शुरू किया जाता है तो सैंपल बहुत अच्छा बनाया जाता है |  यह भी सम्मेलन का सैंपल सभी के आगे रखना है |

अव्यक्त स्थिति क्या चीज़ होती है, इसका अनुभव कराना है |  आप की एक्टिविटी में सभी समय की घड़ी को देखें |  समय की घड़ी बनकर जा रहे हो |  जैसे साकार भी समय की घड़ी बने ना |  वैसे शरीर के होते अव्यक्त स्थिति के घंटे बजाने की घड़ी बनना है |  यह सर्विस सभी से अछि है |  व्यक्त में अव्यक्त स्थिति का अनुभव क्या होता है, वह सभी को प्रैक्टिकल में पाठ पढ़ना है |  अच्छा |

बापदादा और दैवी परिवार सभी के स्नेह के सूत्र में मणका बनकर पिरोना है |  स्नेह के सूत्र में पिरोया हुआ मैं मणका हूँ – यह नशा रहना चाहिए |  मणकों को कहाँ रखा जाता है ?  माला में मणकों को बहुत शुद्धि से रखा जाता है |  उठाते भी बहुत शुद्धि पूर्वक हैं |  हम भी ऐसा अमूल्य मणका हैं, यह समझना है |  (कोई ने सर्विस के लिए राय पूछी) उन्हों की सर्विस वाणी से नहीं होगी |  लेकिन जब चरित्र प्रभावशाली होंगे, चेंज देखेंगे तब वह स्वयं खींचकर आएंगे |  कोई-कोई को अपना अहंकार भी होता है ना |  तो वाणी से वाणी अहंकार के टक्कर में आ जाती है |  लेकिन प्रैक्टिकल लाइफ के टक्कर में नहीं आ सकेंगे |  इसलिए ऐसे-ऐसे लोगों को समझाने के लिए यही साधन है |  वायुमंडल को अव्यक्त बनाओ |  जो भी सेवाकेंद्र हैं, उन्हों के वायुमंडल को आकर्षणमय बनाना चाहिए जो उन्हों को अव्यक्त वतन देखने में आये |  कोई भी दूर से महसूस करे कि यह इस घर के बिच में कोई चिराग है |  चिराग दूर से ही रौशनी देता है |  अपने तरफ आकर्षित करता है |  तो चिराग माफिक चमकता हुआ नज़र आये तब है सफलता |

अव्यक्त भट्ठी में आकर के अव्यक्त स्थिति का अनुभव होता है ?  यह अनुभव जो यहाँ होता है फिर उनको क्या करेंगे ?  साथ लेकर जायेंगे व यहाँ ही छोड़ जायेंगे |  उनको ऐसा साथी बनाना जो कोई कितना भी इस अव्यक्त आकर्षण के साथ को छुड़ाने चाहे तो भी नहीं छूटे |  लौकिक परिवार को अलौकिक परिवार बनाया है |  जरा भी लौकिकपण न हो |  जैसे एक शारीर छोड़ दूसरा लेते हैं तो उस जन्म की कोई भी बात स्मृति में नहीं रहती है ना |  यह भी मरजीवा बने हो न |  तो पिछले जीवन की स्मृति और दृष्टि ऐसे ही ख़त्म हो जानी चाहिए |  लौकिक में अलौकिकता भरने से ही अलौकिक सर्विस होती है |  अलौकिक सर्विस क्या करे हो ?  आत्मा का कनेक्शन पॉवर हाउस के साथ करने की सर्विस करते हो |  कोई तार का तार के साथ कनेक्शन करना होता है तो रब्बर उतारना होता है ना |  वैसे ही आप का भी पहला कर्त्तव्य है कि अपने को आत्मा समझ शरीर के भान से अलग बनाना |  यहाँ की मुख्य सब्जेक्ट कितनी हैं और कौन-सी हैं ?  सब्जेक्ट मुख्य हैं चार |  ज्ञान, योग, धारणा और सेवा |  इनमे भी मुख्य कौन से हैं ?  यहाँ से ही शांति का स्टॉक इकठ्ठा किया है ?  आशीर्वाद मालूम है कैसे मिलती है ?  जितना-जितना आत्माभिमानी बनते हैं उतनी आशीर्वाद न चाहते हुए भी मिलती है |  यहाँ स्थूल में कोई आशीर्वाद नहीं मिलती है |  यहाँ स्वतः ही मिलती है |  अगर बापदादा का आशीर्वाद नहीं होता तो यहाँ तक कैसे आते |  हर सेकंड बापदादा बच्चों को आशीर्वाद दे रहे हैं |  लेकिन लेने वाले जितनी लेते हैं, उतनी अपने पास कायम रखते हैं |

आप का और भी युगल है ?  सदा साथ रहनेवाला युगल कौन है ?  यहाँ सदैव युगल रूप में रहेंगे तो वहां भी युगल रूप में राज्य करेंगे |  इसलिए युगल को कभी अलग नहीं करना है |  जैसे चतुर्भुज कंबाइंड होता है वैसे यह भी कंबाइंड है |  शिवबाबा को अपने से कभी अलग नहीं करना |  ऐसे युगल कभी देख, ८४ जन्मों में ८४ युगलों में ऐसा युगल कब मिला ?  तो जो कल्प में एक बार मिलता है उनको तो पूरा ही साथ रखना चाहिए ना |  अभी याद रखना कि हम युगल हैं |  अकेले नहीं हैं |  जैसे स्थूल कार्य में हार्डवर्कर हो |  वैसे ही मन की स्थिति में भी ऐसे ही हार्ड हो जो कोई भी परिस्थिति में पिघल न जाएँ |  हार्ड चीज़ पिघलती नहीं है |  तो ऐसे ही स्थिति और कर्म दोनों हार्ड हो |  जिसके साथ अति स्नेह होता है सको साथ रखा जाता है ना |  तो सदा ऐसे समझो कि मैं युगल मूर्त हूँ | अगर युगल साथ होगा तो माया आ नहीं सकेगी |  युगल मूर्त समझना यही बड़े ते बड़ी युक्ति है |  कदम-कदम पर साथ रहने के कारण साहस रहता है |  शक्ति रहती है फिर माया आएगी नहीं |

तुम गोडली स्टूडेंट हो ?  डबल स्टूडेंट बनकर के फिर आगे का लक्ष्य क्या रखा है ?  उंच पद किसको समझते हो ?  लक्ष्मी-नारायण बनेंगे ?  जैसा लक्ष्य रखा जाता है तो लक्ष्य के साथ फिर और क्या धारणा करनी पड़ती है ?  लक्षण अर्थात् दैवी गुण |  लक्ष्य जो इतना उंच रखा है तो इतने उंच लक्षण का भी ध्यान रखना है |  छोटी कुमारी बहुत बड़ा कार्य कर सकती है |  अपनी प्रैक्टिकल स्थिति में स्थित हो किसको बैठ सुनाये तो उनका असर बड़ों से भी अधिक हो सकता है |  सदैव लक्ष्य यही रखना है कि मुझ छोटी को कर्त्तव्य बहुत बड़ा करके दिखाना है |  देह भल छोटी है लेकिन आत्मा की शक्ति बड़ी है |  जो जास्ती पुरुषार्थ करने की इच्छा रखते हैं उनको मदद भी मिलती है |  सिर्फ अपनी इच्छा को दृढ़ रखना, तो मदद भी दृढ़ मिलेगी |  कितनी भी कोई हिलाए लेकिन यह संकल्प पक्का रखना |  सकल्प पक्का होगा तो फिर सृष्टि भी ऐसी बनेगी |  भाल जिस्मानी सर्विस भी करते रहो |  जिस्मानी सर्विस भी एक साधन है इसी साधन से सर्विस कर सकते हो |  ऐसे ही समझो कि इस सर्विस के सम्बन्ध में जो भी आत्माएं आती हैं उनको सन्देश देने का यह साधन है |  सर्विस में तो कई आत्माएं कनेक्शन में आती हैं |  जैसे यहाँ जो आये उन्हीं को भी सर्विस के लिए सम्बन्धियों के पास भेजा ना |  ऐसे ही समझो कि सर्विस के लिए यह स्थूल सर्विस कर रहे हैं |  तो फिर मन भी उसमें लगेगा और कमाई भी होगी |  लौकिक को भी अलौकिक समझ करो |  फिर कोई और वातावरण में नहीं आयेंगे |  जैसे जैसे अव्यक्त स्थिति होती जाएगी वैसे बोलना भी कम होता जायेगा |  कम बोलने से ज्यादा लाभ होगा | फिर इस योग की शक्ति से सर्विस करेंगे |  योगबल और ज्ञान-बल दोनों इकठ्ठा होता है |  अभी ज्ञान बल से सर्विस हो रही है |  योगबल गुप्त है |  लेकिन जितना योगबल और ज्ञानबल दोनों समानता में लायेंगे उतनी-उतनी सफ़लता होगी |  सरे दिन में चेक करो कि योगबल कितना रहा, ज्ञानबल कितना रहा ?  फिर मालूम पद जायेगा कि अंतर कितना है |  सर्विस में बिजी हो जायेंगे तो फिर विघ्न आदि भी टल जायेंगे |  दृढ़ निश्चय के आगे कोई रुकावट नहीं आ सकती |  ठीक चल रहे हैं |  अथक और एकरस दोनों ही गुण हैं |  सदैव फॉलो फ़ादर करना है |  जैसे साकार रूप में भी अथक और एकरस, एग्जाम्पल बनकर दिखाया |  वैसे ही औरों के प्रति एग्जाम्पल बनना है |  यही सर्विस है |  समय भाल न भी मिले सर्विस का, लेकिन चरित्र भी सर्विस दिखला सकता है |  चरित्र से भी सर्विस होती है |  सिर्फ वाणी से नहीं होती |  आप के चरित्र उस विचित्र बाप की याद दिलाएं |  यह तो सहज सर्विस है न |  जैसे कई लोग अपने गुरु का वा स्त्री अपने पति का फोटो लॉकेट में लगा देती है न |  यह एक स्नेह की निशानी है |  तो तुम्हारा या मस्तक जो है यह भी उस विचित्र का चरित्र दिखलायें |  यह नयन उस विचित्र का चित्र दिखाएं |  ऐसा अविनाशी लॉकेट पहन लेना है |  अपनी स्मृति भी रहेगी और सर्विस भी होगी |

मधुबन में आकर मुख्य कर्त्तव्य क्या किया ?  जैसे कोई खान पर जाते हैं तो खान के पास जाकर क्या किया जाता है |  खान से जितना ले सकते हैं उतना लिया जाता है |  सिर्फ़ थोड़ा-सा नहीं |  वैसे ही मधुबन है सर्व प्राप्तियों की खान |  तो आप खान पर आये हो ना |  बाकि सेवाकेंद्र हैं इस खान की ब्रान्चेस |  खान पर जाने से ख्याल रखा जाता है जितना ले सकें |  तो यहाँ भी जितना ले सको ले सकते हो |  यहाँ की एक-एक वस्तु एक-एक ब्राह्मण आत्मा बहुत कुछ शिक्षा और शक्ति देनेवाली है |  बापदादा यही चाहते हैं कि जो भी आते हैं वह थोड़ा बहुत नहीं लेकिन सभी कुछ ले लेवें |  बापदादा का बच्चों में शेन है तो एक-एक को संपन्न बनाने चाहते हैं |  जितना यहाँ लेने में संपन्न बनेंगे उतना ही भविष्य में राज्य पाने के संपन्न होंगे |  इसलिए एक सेकंड भी इन अमूल्य दिनों को ऐसे नहीं गँवाना |  एक-एक सेकंड में पद्मों की कमाई कर सकते हो |  पदम सौभाग्यशाली तो हो |  जो इस भूमि  पर पहुँच गए हो |  लेकिन इस पदम भाग्य को सदा कायम रखने के लिए पुरुषार्थ सदैव सम्पूर्णता का रखना |  जैसा बीज होता है वैसा फल निकलता है |  तो आप लोग जैसे बीज हो, नींव जितनी खुद मज़बूत होगी उतना ही ईमारत भी पक्की होगी |  इसलिए सदैव समझना चाहिए कि हम नींव हैं |  हमारे ऊपर साड़ी बिल्डिंग का आधार है |

याद का रेस्पोंड मिलता है ?  बापदादा तो अब सभी के साथ हैं ही, क्योंकि साकार में तो एक स्थान पर साथ रह सकते थे |  अभी तो सर्व के साथ रह सकते हैं |  सदैव यह ध्यान रखो कि एक मत से एक रिजल्ट होगी |  इस गुण को परिवर्तन में लाना |  कैसी भी परिस्थिति आये, लेकिन अपने को मज़बूत रखना है |  औरों को अपने गुणों का दान देना है |  जैसे दान करने से रिटर्न में भविष्य में मिलता है ना |  इस गुण का दान करने से भी बड़ी प्रालब्ध मिलती है जो एक मत होते हैं वाही एक को प्यारे लगे हैं |  बापदादा दो होते एक हैं न |  वैसे भाल कितने भी हो लेकिन एक मत होकर चलना |  बाप के घर में आकर विशेष खज़ाना लिया ?  बाप के घर में विशेषताएं भरी हुई हैं ना |  अपने घर में असली स्वरुप में स्थित होने आये हो अपना असली स्वरुप और असली स्थिति क्या है, वह याद आती है ?  आत्मा की असली स्थिति क्या है ?  जैसे पहले आत्मा परमधाम की निवासी, सर्व गुणों का स्वरुप है |  वैसे ही यहाँ भी अपनी स्थिति का अनुभव् करने के लिए आये हो |  मधुबन में आये हो उस स्थिति का टेस्ट करने |  टेस्ट करने बाद उनको सदा के लिए अपनाना है |  इसका नाम ही है मधुबन |  मधु अर्थात् मधुरता यानि स्नेह और शक्ति दोनों ही वरदान पूर्ण रूप से प्राप्त करना |  यहाँ मधुबन में दोनों चीज़ वरदान रूप में मिलती है |  फिर बहार में जायेंगे तो इन दोनों चीज़ के लिए अपना पुरुषार्थ करना पड़ेगा |  इसलिए यहाँ वरदान रूप में प्राप्त जो हो रहा है उनको ऐसा प्राप्त करना जो अविनाशी रहे |  जब वरदान रूप में प्राप्त हो सकते हैं तो पुरुषार्थ करके क्यों लेवें |  गुरु वरदान देता है तो क्या करना होता है ?  अपने को उसके अर्पण करना पड़ता है, तब वरदान प्राप्त होता है |  तो यहाँ भी जितना अपने को अर्पण करेंगे, उतना वरदान प्राप्त होगा |  वरदान तो सभी को मिलता है, लेकिन जो ज्यादा अपने को अर्पण करता है, उतना ही वरदान का पात्र बनता है |  वरदान से ऐसी झोली भर लो, जो भरी हुई झोली कभी खाली न हो |  जितना जो भरना चाहे वह भर सकते हैं |  ऐसा ही ध्यान रखकर इन थोड़े दिनों में अथक लाभ उठाना है |  एक-एक सेकंड सफल करने के यह दिन है |  अभी का एक सेकंड बहुत फायदे और बहुत नुकसान का भी है |  एक सेकंड में जैसे कई वर्षों की कमाई गँवा भी देते हैं ना |  तो यहाँ का एक सेकंड इतना बड़ा है |

त्याग से ही भाग्य बनता है |  लेकिन त्याग करने के बाद मनसा में भी संकल्प उत्पन्न नहीं होना चाहिए |  जब कोई बलि चढ़ता है तो उमे अगर ज़रा भी चिल्लाया वा आँखों से बूँद निकली तो उनको देवी के आगे स्वीकार नहीं कराएँगे |  झाटकू सुना है ना |  एक धक् से कोई चीज़ को ख़त्म करने और बार बार काटने में फ़र्क रहता है ना |  झाटकू अर्थात् एक धक् से ख़त्म |  बापदादा के पास भी कौन से बच्चे स्वीकार होंगे ?  जिनको मनसा में भी संकल्प न आये इसको कहा जाता है महाबली | ऐसे महान बलि को ही महान बल की प्राप्ति होती है |  सर्वशक्तिवान के बच्चे हो और फिर शक्ति नहीं, बाप की प्पुरु जायदाद का हक़दार बनना है ना |  सर्वशक्तिवान बाप की सर्व शक्तियों की जायदाद, जन्म-सिद्ध अधिकार सदैव अपने सामने रखो |  सर्वशक्तिवान के आगे कमज़ोरी ठहर सकती है ?  आज से कमज़ोरी ख़त्म |  सिर्फ एक शक्ति नहीं |  पाण्डव भी शक्ति रूप हैं |  एक दीप से अनेक जगते हैं |

डबल सर्जरी करते हो ?  और ही अच्छा चांस मिलता है दो मार्ग बताने का |  शरीर का भी और मन का भी |  जैसे स्थूल सर्विस करने से तनख्वाह मिलती है ?  (स्वर्ग की बादशाही मिलती है) वह तो वहां मिलेगी लेकिन यहाँ क्या मिलता है ?  प्रत्यक्ष फल का अनुभव होता है ?  भविष्य तो बनता ही है लेकिन भविष्य से भी ज्यादा अभी की प्राप्ति है |  अभी जो ईश्वरीय अतीन्द्रिय सुख मिलता है वह भविष्य में नहीं मिल सकता |  यह अतीन्द्रिय सुख सारे कल्प में कभी नहीं मिल सकता |  ऐसा खजाना अभी बाप द्वारा मिलता है |  अनेक जन्म इन्द्रियों का सुख और एक सेकंड में अतीन्द्रिय सुख अनुभव होता है ?  शिवबाबा को युगल बनाया है ?  वह देहधारी युगल तो सुख के साथी होते हैं लेकिन यह तो दुःख के समय साथी बनता है |  ऐसे  युगल को तो एक सेकंड भी अलग नहीं करना चाहिए |  साथ रखना अर्थात् शक्ति रूप बनना |  यह ब्राह्मण परिवार देखा |  इतना बड़ा परिवार कब मिलता है ?  सिर्फ इस संगम पर ही इतना बड़ा परिवार मिलता है |  हम इतने बड़े परिवार के हैं – यह नशा रहता है ?  जितना कोई बड़े परिवार का होता है उतनी उसको ख़ुशी रहती है |  सारी दुनिया में हम थोड़ों को इतना बड़ा परिवार मिलता है |  तो यह निश्चय और नशा होना चाहिए |  हरेक को यह नशा होना चाहिए कि कोटों में से कोई हम गायन में आनेवाली आत्माएं हैं |  कभी सोचा था क्या कि ऐसा सौभाग्य प्राप्त हो सकता है ?  अचानक लॉटरी मिली है |  लॉटरी की ख़ुशी होती है ना और फिर यह अविनाशी लॉटरी है |  जो कभी ख़त्म हो न सके |  ऐसी लॉटरी हम आत्माओं को मिली है |  यह नशा रहता है ?  कोने-कोने से बापदादा ने देखो कीन्हों को चुना है |  चुने हुए रत्नों में आप विशेष हैं |  यह याद रहता है |  बापदादा को कौन-से रत्न अच्छे लगते हैं ?  साधारण |  ऐसी ख़ुशी सदैव अविनाशी रहे |  वह कैसे रहेगी ?  जैसे दीपक होता है वह सदैव जगा रहे इसके लिए ध्यान रखते हैं |  घृत और बत्ती इन दो चीज़ का ख्याल रखना पड़ता है |  तो यहाँ भी ख़ुशी का दीपक सदैव जगा रहे इसके लिए दो बातें ध्यान में रखनी है |  ज्ञान घृत और योग है बत्ती |  अगर यह दोनों ही ठीक हैं तो ख़ुशी का दीपक अविनाशी रहेगा |  कभी बुझेगा नहीं |

१५ दिन भी इस संगमयुग के बहुत हैं |  ऐसे मत समझना कि हम तो १५ दिन के बच्चे हैं लेकिन संगम का समय ही अभी बहुत कम है |  इस काम के हिसाब से यह १५ दिन भी बहुत हैं, इसलिए अब ऐसे ही सोचना कि लास्ट वालों को फ़ास्ट होना है |  बिछड़े हुए जो होते हैं वह आने से ही तीव्र पुरुषार्थ में लग जाते हैं हिम्मत बच्चे रखते हैं, मदद बाप देते हैं |  एक कुमारी १०० ब्राह्मणों से उत्तम गाई जाती है |  एक में १०० की शक्ति भरेंगे तो क्या नहीं कर सकते |  सिर्फ अपने पांव को पक्का मजबूत बनाओ |  कितना भी कोई हिलाएं तो हिलना नहीं है |  अचलघर भी तुम्हारा यादगार है ना |  अचल अर्थात् जिसको कोई हिला न सके |  तीन मास में तीन वर्सा लिए हैं ?  बापदादा तीन वर्सा कौन सा देते हैं ?  सुख, शांति और शक्ति |  जितना अधिकार लेंगे उतना वहाँ राज्य के अधिकारी बनेंगे |  सम्पूर्ण अधिकार पाने का लक्ष्य रखना है |  क्योंकि बाप भी सम्पूर्ण है ना |  

युगल रहते हुए अकेले रहे हो गा युगल रूप में रहते हो ?  अकेला रूप कौन सा है ?  आत्मा अकेली है ना |  आते भी अकेले हैं |  जाते भी अकेले हैं |  तो युगल रूप में पार्ट बजाते भी आत्मिक स्थिति में रहना अर्थात् अकेले बनना है और फिर रूहानी युगल बनना है |  तो बाप और बच्चे |  वह तो हुआ देह का युगल |  आत्मा और परमात्मा यह भी युगल हैं |  आत्मा सजनी, सीता कहते हैं ना |  परमात्मा है साजन, राम |  तो रूहानी युगल मूर्त बनना है |  बस |  देह के  युगल रूप नहीं |  देहधारी का युगल रूप ख़त्म हुआ |  अनेक जन्म देहधारियों का युगल रूप देखा |  अब आत्मा और परमात्मा का युगल रूप बनना है |  ऐसी स्थिति में रहते हो ?  इस अनोखे युगल रूप के सामने वह युगल तो कुछ नहीं |  तो देह की भावना ख़त्म हो जाएगी |  सभी से प्रिय चीज़ क्या है ?  प्रिय चीज़ अच्छी लगती है ना |  तो उस प्रिय वास्तु को छोड़ दुसरे को प्रिय कैसे बना सकते हैं |  अकेला भी बन जाना है, फिर युगल भी बनना है |

कोई को आने से ही लॉटरी मिल जाती है |  कोई को प्रयत्न करने से लॉटरी मिलती |  ऐसे उच्च भाग्यशाली अपने को समझते हो ?  कुमारों के लिए भी सरल मार्ग है |  क्योंकि उलटी सीढ़ी जो चढ़े हुए हैं, उनको उतरनी पड़ती हैं |  इसलिए कुमार-कुमारियों के लिए और ही सहज है |  जो बंधन मुक्त होते हैं वह जल्दी दौड़ सकते हैं |  तो सभी बातों में निर्बन्धन रहना है |  कैसी भी परिस्थिति में अपनी स्थिति ऊँची रखनी है |  जो उच्च जीवन का लक्ष्य है उनसे दूर  नहीं होना है |  अच्छा-