25-01-70              ओम शान्ति                        अव्यक्त बापदादा         मधुबन 


यादगार कायम करने की विधि  – २५-०१-१९७०

अव्यक्त स्थिति ही मुख्य सब्जेक्ट है |  व्यक्त में रहते कर्म करते भी अव्यक्त स्थिति रहे |  इस सब्जेक्ट में ही पास होना है |  अपने बुद्धि की लाइन को क्लियर रखना है |  जब रास्ता क्लियर होता है तो जल्दी-जल्दी दौड़कर मज़िल पर पहुंचना होता है |  पुरुषार्थ की लाइन में कोई रुकावट हो तो उसको मिटाकर लाइन क्लियर करना – इस साधन से ही अव्यक्त स्थिति को प्राप्ति होती है |  मधुबन में आकर कोई-न-कोई विशेष गुण सभी को देना यही यादगार है |  वह तो हो गया जड़ यादगार |  लेकिन यह अपने गुण की याद देना यह है चैतन्य यादगार |  जो सदैव याद करते रहते |  कभी कहीं पर जाओ तो यही लक्ष्य रखना है कि जहाँ जाएँ वहां यादगार कायम करें |  यहाँ से विशेष स्नेह अपने में भर के जायेंगे तो स्नेह पत्थर को भी पानी कर देगा |  यह आत्मिक स्नेह की सौगात साथ ले जाना |  जिससे किसी पर भी विजय हो सकती है |  समय ज्यादा समझते हो वा कम ?  तो अब कम समय में १००% तक पहुँचने की कोशिश करनी है |  जितनी भी अपनी हिम्मत है वह पूरी लगानी है |  एक सेकंड भी व्यर्थ न जाए इतना ध्यान रखना है |  संगम का एक सेकंड कितना बड़ा है |  अपने समय और संकल्प दोनों को सफल करना है |  जो कार्य बड़े न कर सकें वह छोटे कर सकते हैं |  अभी तो वह कार्य भी रहा हुआ है |  अब तक जो दौड़ी लगाईं वह तो हुई लेकिन अब जम्प देना है तब लक्ष्य को पा सकेंगे |  सेकंड में बहुत बातों को परिवर्तन करना – यह है जम्प मारना |  इतनी हिम्मत है ?  जो कुछ सुना है उनको जीवन में लाकर दिखाना है |  जिसके साथ स्नेह रखा जाता है, उन जैसा बन्ने का होता है |  तो जो भी बापदादा के गुण है वह खुद में धारण करना, यही स्नेह का फ़र्ज़ है |  जो बाप की श्रेष्ठता है उसको अपने में धारण करना है |  यह है स्नेह |  एक भी विशेषता में कमी न रहे |  जब सर्व गुण अपने में धारण करेंगे तब भविष्य में सर्वगुणसंपन्न देवता बनेंगे |  यही लक्ष्य रखना है कि सर्व गुण संपन्न बनें |  बाप के गुण सामने रख अपने को चेक करो कि कहाँ तक हैं |  कम परसेंटेज भी न हो |  परसेंटेज भी सम्पूर्ण हो तब वहां भी सम्बन्ध में नजदीक आ सकेंगे |   

अब रूह को ही देखना है |  जिस्म को बहुत देख-देखकर थक गए हो |  इसलिए अब रूह को ही देखना है |  जिस्म को देखने से क्या मिला ?  दुखी ही बने |  अब रूह-रूह को देखता है तो रहत मिलती है |  शूरवीर हो ना ! शूरवीर की निशानी क्या होती है ?  उनकों कोई भी बात को पार करना मुश्किल नहीं लगता है और समय भी नहीं लगता है |  उनका समय सिवाए सर्विस के अपने विघ्नों आदि को हटाने में नहीं जाता है |  इसको कहा जाता है शूरवीर |  अपना समय अ[में विघ्नों में नहीं, लेकिन सर्विस में लगाना चाहिए |  अब तो समय बहुत आगे बढ़ गया है |  इस हिसाब से अब तक वह बातें बचपन की हैं |  छोटे बच्चे नाज़ुक होते हैं |  बड़े बहादूर होते हैं |  तो पुरुषार्थ में बचपना न हो |  ऐसा बहादूर होना चाहिए |  कैसी भी परिस्थिति हो, क्या भी हो, वायुमंडल कैसा भी हो |  लेकिन कमज़ोर न बनें, इसको शूरवीर कहा जाता है |  शारीरिक कमजोरी होती है तो भी असर हो जाता है – मौसम, वायु आदि का |  तंदुरुस्त को असर नहीं होता है |  तो यह भी वायुमंडल का असर नाज़ुक को होता है |  वायुमंडल कोई रचयिता नहीं है |  वह तो रचना है |  रचयिता ऊँचा वा रचना ?  (रचयिता) तो फिर रचयिता  रचना के अधीन क्यों ?  अब शूरवीर बन्ने का अपना स्मृति दिवस याद रखना |  यह स्मृति भूलना नहीं |  ऐसा नक्शा बनकर जाओ जो आपके नक़्शे में बाप को देखें |  अपने को सम्पूर्णता का नक्शा दिखाना है |  हिम्मत है तो मदद ज़रूर मिल जाएगी |  अब यह समझते हो कि यहाँ आकर ढीलेपन में तेज़ आई है ?  अभी पुरुषार्थ म इ ढीले नहीं बनना है |  सम्पूर्ण हक लेने के लिए सम्पूर्ण आहुति भी देनी है |  कोई भी यग्य रचा जाता है तो वह सम्पूर्ण सफल कैसे होता ?  जबकि आहुति डाली जाती है |  अगर आहुति कम होगी तो यग्य सफल नहीं हो सकता |  यहाँ भी हरेक को यह देखना है कि आहुति डाली है ?  ज़रा भी आहुति की कमी रह गयी तो सम्पूर्ण सफ़लता नहीं होगी |  जितना और इतना का हिसाब है |  हिसाब करने में धर्मराज भी है |  उनसे कोई भी हिसाब रह नहीं सकता |  इसलिए जो भी कुछ आहुति में देना है वह सम्पूर्ण देना है और फिर सम्पूर्ण लेना है |  देने में सम्पूर्णता नहीं तो लेने में भी नहीं होगी |  जितना देंगे उतना ही लेंगे |  जब मालूम पद गया कि सफलता किस्मे है फिर भी सफल न करेंगे तो क्या होगा ?  कमी रह जाएगी इसलिए सदैव ध्यान रखो कि कहाँ कुछ रह तो नहीं गया |  मन्सा में, वाणी में, कर्म में कहाँ भी कुछ रहना नहीं चाहिए |  कोई भी कार्य का जब समाप्ति का दिन होता है तो उस समय चारों ओर देखा जाता है कि कुछ रह तो नहीं गया |  वैसे अभी भी समाप्ति का समय है |  अगर कुछ रह गया तो वह रह ही जायेगा |  फिर स्वीकार नहीं हो सकता |  इसको सम्पूर्ण आहुति भी नहीं कहा जायेगा |  इसलिए इतना ध्यान रखना है |  अभी कमी रखने का समय बीत चूका |  अब समय बहुत तेज़ आ रहा है |  अगर समय तेज़ चला गया और खुद ढीले रह गए तो फिर क्या होगा ?  मंज़िल पर पहुँच सकेंगे ?  फिर सतयुगी मंजिल के बजाये त्रेता में जाना पड़ेगा |  जैसे समय तेज़ दौड़ रहा है वैसे खुद को भी दौड़ना है |  स्थूल में भी जब कोई गाडी पकडनी होती है तो समय को देखना पड़ता है |  नहीं तो रह जाते हैं |  समय तो चल ही रहा है |  कोई के लिए समय को रुंकना नहीं है |  अब ढीले चलने के दिन गए |  दौड़ी के भी दिन गए |  अब है जम्प लगाने के दिन |  कोई भी बात की कमी फील होती है तो उसको एक सेकंड में परिवर्तन में लाना इसको कहा जाता है जम्प |  देखने में ऊँचा आता हैं लेकिन है बहुत सहज |  सिर्फ निश्चय और हिम्मत चाहिए |  निश्चय वालों की विजय तो कल्प पहले भी हुई थी वह अभी भी हुई पड़ी है |  इतना पक्का अपने को बनाना है |  सेकंड सेकंड मन, वाणी और कर्म को देखना है |  बापदादा को यह देखना कोई मुश्किल नहीं |  देखने के लिए अब कोई आधार लेने की आवश्यकता नहीं है |  कहाँ से भी देख सकते हैं |  पुरानों से नए में और ही उमंग होता है कि हम करके दिखायेंगे |  ऐसे तीव्र स्टूडेंट्स भी हैं |  नए ही कमाल कर सकते हैं क्योंकि उन्हों को समय भी स्पष्ट देखने में आ रहा है |  समय का भी सहयोग है, परिस्थितियों का भी सहयोग है |  परिस्थितियाँ भी अब दिखला रही हैं कि पुरुषार्थ कैसे करना है |  जब परीक्षाएं शुरू हो गयी तो फिर पुरुषार्थ कर नहीं सक्तेंगे |  फिर फाइनल पेपर शुरू हो जायेगा |  पेपर के पहले पहुँच गए हो, यह भी अपना सौभाग्य समझना जो ठीक समय पर पहुँच गए हो |  पेपर देने के लिए दाखिल हो सके हो |  पेपर शुरू हो जाता है फिर गेट बंध हो जाता है |  शुरू में आये उन्हों को वैराग्य दिलाया जाता था |  आजकाल की परिस्थितियाँ ही वैराग्य दिलाती है |  आप लोग की धरनी बनने में देरी नहीं है |  सिर्फ़ ज्ञान के निश्चय का पक्का बीज डालेंगे और फल तैयार हो जायेगा |  यह ऐसा बीज है जो बहुत जल्दी फल दे सकता है |  बीज पावरफुल है |  बाकी पालना करना, देखभाल करना आप का काम है |  बाप सर्वशक्तिवान और बच्चों को संकल्पों को रोकने की भी शक्ति नहीं !  बाप सृष्टि को बदलते हैं, बच्चे अपने को भी नहीं बदल सकते! यही सोचो कि बाप क्या है और हम क्या है ?  तो अपने ऊपर खुद ही शर्म आएगा |  अपनी चलन को परिवर्तन में लाना है |  वाणी से इतना नहीं समझेंगे |  परिवर्तन देख खुद ही पूछेंगे कि आप को ऐसा बनानेवाला कौन ?  कोई बदलकर दिखता है तो न चाहते हुए भी उनसे पूछते हैं क्या हुआ, कैसे किया, तो आप की भी चलन को देख खुद खींचेंगे |

यह तो निमित्त सेवा केंद्र हैं |  मुख्या केंद्र तो सभी का एक ही है |  ऐसे बेहद की दृष्टि में रहते हो ना | मुख्य केंद्र से ही सभी का कनेक्शन है |  सभी आत्माओं का उनसे कनेक्शन है, सम्बन्ध है |  एक से सम्बन्ध रहता है तो अवस्था भी एकरस रहती है |  अगर और कहाँ सम्बन्ध की राग जाती है तो एकरस अवस्था नहीं रहेगी |  तो एकरस अवस्था बनाने के लिए सिवाए एक के और कुछ भी देखते हुए न देखो |  यह जो कुछ देखते हो वह कोई वास्तु रहने वाली नहीं है |  साथ रहने वाली अविनाशी वास्तु वह एक बाप ही है |  एक की ही याद में सर्व प्राप्ति हो सकती है और सर्व की याद से कुछ भी प्राप्ति न हो तो कौन-सा सौदा अच्छा ?  देखभाल कर सौदा किया जाता है या कहने पर किया जाता है ?  यह भी समझ मिली है कि यह माया सदैव के लिए विदाई लेने थोडा समय मुखड़ा दिखलाती है |  अब विदाई लेने आती है, हार खिलने नहीं |  छुट्टी लेने आती है |  अगर घबराहट आई तो वह कमजोरी कही जाएगी |  कमजोरी से फिर माया का वार होता है |  अब तो शक्ति मिली है ना |  सर्वशक्तिवान के साथ सम्बन्ध है तो उनकी शक्ति के आगे माया की शक्ति क्या हैं ?  सर्वशक्तिवान के बच्चे हैं, यह नशा नहीं भूलना |  भूलने से ही फिर माया वार करती है |  बेहोश नहीं होना है |  होशियार जो होते हैं, वह होश रखते हैं |  आजकल डाकू लोग भी कोई-कोई चीज़ से बेहोश कर देते हैं |  तो माया भी ऐसा करती है |  जो चतुर होते हैं वह पहले से ही जान लेते कि इनका यह तरीका है इसलिए पहले से ही सावधान रहते हैं |  अपने होश को गंवाते नहीं हैं |  इस संजीवनी बूटी को सदैव साथ रखना है |

भल एक मास से आये हैं |  यह भी बहुत है |  एक सेकंड में भी परिवर्तन आ सकता है |  ऐसे नहीं समझना कि हम तो अभी आये हैं, नए हैं, यहाँ तो सेकंड का सौदा है |  एक सेकंड में जन्म सिद्ध अधिकार ले सकते हैं |  इसलिए ऐसा तीव्र पुरुषार्थ करो, यही युक्ति मिलती है |  जो भी बात सामने आये तो यह लक्ष्य रखो कि एक सेकंड में बदल जाये |  सारे कल्प में यही समय है |  अब नहीं तो कब नहीं, यह मन्त्र याद रखना है |  जो भी पुराने संस्कार हैं और पुराणी नेचर है वह बदल कर ईश्वरीय बन जाये |  कोई भी पुराना संस्कार, पुराणी आदतें न रहे |  आपके परिवर्तन से अनेक लोग संतुष्ट होंगे |  सदैव यही कोशिश करनी है कि हमारी चलन द्वारा कोई को भी दुःख न हो |  मेरी चलन, संकल्प, वाणी, हर कर्म सुखदायी हो |  यह है ब्राह्मण कुल की रीति |  जो दूर से ही कोई समझ ले कि यह हम लोगों से  न्यारे हैं |  न्यारे और प्यारे रहना – यह है पुरुषार्थ |  औरों को भी ऐसा बनाना है |  अपने जीवन में अलौकिकता भासती है ?  अपने को देखना कि लोगों से न्यारा अपने को समझते हैं |  अगर याद भूल जाते हैं तो बुद्धि कहाँ रहती है ?  सिर्फ एक तरफ से भूलते हैं तो दुसरे तरफ लगेगी ना |  यह अपने को चेक करो कि अव्यक्त स्थिति से निचे आते हैं तो किस व्यक्त तरफ बुद्धि जाती है ?  ज़रूर कुछ रहा हुआ है तब बुद्धि वहाँ जाती है |  किस बातें ऐसी होती हैं जिनको खींचने से खिंचा जाता है |  कई बातिओं में ढीला छोड़ना भी खींचना होता है |  पतंग को ऊँचा उड़ाने के लिए ढीला छोड़ना पड़ता है |  देखा जाता है इस रीति नहीं खींचेगा तो फिर ढीला छोड़ना चाहिए |  जिससे वह स्वयं खींचेगा |

विघ्नों को मिटाने की युक्तियाँ अगर सदैव याद हैं तो पुरुषार्थ में ढीले नहीं होंगे |  युक्तियाँ भूल जाते हैं तो पुरुषार्थ में ढीला हो जाता है |  एक एक बात के लिए कितनी युक्तियाँ मिली हैं ?  प्राप्ति कितनी बड़ी है और रास्ता कितना सरल है |  जो अनेक जन्म पुरुषार्थ करने पर भी कोई नहीं पा सकते |  वह एक जन्म के भी कुछ घड़ियों में प्राप्त कर रहे हो |  इतना नशा रहता है ना! “इच्छा मात्रं अविद्या” ऐसी अवस्था प्राप्त करने का तरीका बताया |  ऐसी ऊँची नॉलेज और कितनी महीन है |  जीवन में इतना ऊँचा लक्ष्य कोई रख नहीं सकता कि मैं देवता बन सकता हूँ |  यह कब सोचा था कि हम ही देवता थे ?  सोचा क्या था और बनते क्या हो ?  बिन मांगे अमूल्य रत्न मिल जाते हैं |  ऐसे पद्मापद्म भाग्यशाली अपने को समझते हो ?  प्रेसिडेंट आदि भी आपके आगे क्या हैं ?  इतनी ऊँची दृष्टि, इतना ऊँचा स्वमान यद् रहता है कि कब भूल भी जाते हो ?  स्मृति-विस्मृति की चढ़ाई उतारते चढ़ते हो ?  गन्दगी से मछर आदि प्रगट होते हैं इसलिए उनको हटाया जाता है |  वैसे ही अपनी कमजोरी से माया के कीड़े पकड़ लेते हैं |  कमज़ोरी को आने न दो तो माया आयेगी नहीं |  सदैव यह यद् रखो कि सर्वशक्तिवान के साथ हमारा सम्बन्ध है |  फिर कमजोरी क्यों ?  सर्वशक्तिवान बाप के बच्चे होते भी माया की शक्ति को खलास नहीं मर सकते |  एक बात सदैव याद रखो कि बाप मेरा सर्वशक्तिवान है |  हम सभी से श्रेष्ठ सूर्यवंशी हैं |  हमारे ऊपर माया कैसे वार कर सकती है |  अपना बाप, अपना वंश यद् रखेंगे तो माया कुछ भी नहीं कर सकेगी |  स्मृति स्वरुप बनना है |  इतने जन्म विस्मृति में रहे फिर भी विस्मृति अच्छी लगती है ?  ६३ जन्म विस्मृति में धोखा खाया, अब एक जन्म के लिए धोखे से बचना मुश्किल लगता है ?  अगर बार-बार कमज़ोर बनते, चेकिंग नहीं रखते तो फिर उनकी नेचर ही कमज़ोर बन जाती है |  अवस्था चेक कर अपने को ताक़तवर बनाना है, कमजोरी को बदल शक्ति लानी है |

अभी जो बैठे हैं वह अपे को सूर्यवंशी सितारे समझते हो ?  सूर्यवंशी सितारों का क्या कर्त्तव्य है ?  सूर्यवंशी सितारा माया के अधीन हो सकते हैं ?  सभी मायाजीत बने हो ?  बने हैं वा बनना है ?  मायाजीत का टाइटल अपने ऊपर धारण किया है ?  युगल में भी एक कहते हैं कि मायाजीत बन रहे हैं और एक कहते हैं कि बन गए हैं |  एक ही पढाई, एक ही पढ़नेवाला, फिर भी कोई विजयी बन गए हैं, कोई बन रहे हैं, यह फर्क क्यों ?  अगर अब तक भी त्रुटियाँ रहेंगी तो त्रुटियों वाले त्रेता युग के बन जायेंगे |  और जो पुरुषार्थी हैं वह सतयुग के बनेंगे |  पहले से ही पूरा अभ्यास होगा तो वह अभ्यास मदद देगा |  अगर ऐसा ही अभ्यास रहा, कभी विस्मृति कभी स्मृति तो अंत समय भी  विस्मृति हो सकती है |  जो बहुत समय के संस्कार होते हैं वाही अंत की स्थिति रहती है |  लौकिक रीति से जब कोई शरीर छोड़ते हैं, अगर कोई संस्कार दृढ़ होता है, खान-पान वा पहनने आदि का तो पिछाड़ी समय भी वह संस्कार सामने आता है |  इसलिए अभी से लेकर सदैव स्मृति के संस्कार भरो |  तो अंत में यही मददगार बनेंगे – विजयी बनने में |  स्टूडेंट बहुत समय की पढाई ठीक नहीं पढ़ते हैं तो पेपर ठीक नहीं दे सकते |  बहुत समय का अभ्यास चाहिए |  इसलिए अब ये विस्मृति के अथवा हार खाने के संस्कार मिट जाने चाहिए | अभी वह समय आ गया |  क्योंकि साकार रूप में सम्पूर्णता का सबूत देखा |  साकार सम्पूर्णता को प्राप्त कर चुके, फिर आप कब करेंगे ?  समय की घंटी बज चुकी है | फिर भी घंटी बजने के बाद अगर पुरुषार्थ करेंगे तो क्या होगा ?  बन सकेंगे ?  पहली सीटी बज चुकी है |  दूसरी भी बज गयी |  पहली सीटी थी साकार में माँ की और दूसरी बजी साकार रूप की |  अब तीसरी सीटी बजनी है |  दो सीटी होती हैं तैयार करने की और तीसरी होती है सवार हो जाने की |  दो घंटी इत्तलाव की होती हैं |  तीसरी इत्तलाव की नहीं होती है |  तीसरी होती है सवार हो जाने की |  तीसरी में जो रह गया सो रह गया |  इतना थोडा समय है फिर क्या करना चाहिए ?  अगर तीसरी सीटी पर संस्कारों को समेटना शुरू करेंगे तो फिर रह जायेंगे |  सुनाया था ना कि पेटी बिस्तर कौन-सा है |  व्यर्थ संकल्पों रूपी बिस्तरा और अनेक समस्याओं की पेटी दोनों ही बंद करनी है |  जब दोनों ही समेत कर तैयार होंगे तब जा सकेंगे |  अगर कुछ रह गया तो बुद्धियोग ज़रूर उस तरफ जायेगा |  फिर सवार हो न सकेंगे अर्थात् विजयी बन नहीं सकेंगे |  अब इसे क्या करना पड़े ?  कब कर लेंगे यह `कब’ शब्द को निकाल दो |  `अब’ शब्द को धारण करो |  कब कर लेंगे, धीरे-धीरे करेंगे |  ऐसे सोचनेवाले दूर ही रह जायेंगे |  ऐसा समय अब पहुँच गया है |  इसलिए बापदादा सुना देते हैं फिर कोई उलहना न दे |  समय का भी आधार रखना है |  अगर समय के आधार पर ठहरे तो प्राप्ति कुछ नहीं होगी |  समय के पहले बदलने से अपने किये का फल मिलेगा |  जो करेगा वह पायेगा |  समय प्रमाण किया, वह तो समय की कमाल हुई |  अपनी मेहनत करनी है |

बाप का बच्चों पर स्नेह होता है |  तो स्नेह की निशानी है सम्पूर्ण बनना |  चल तो रहे हैं लेकिन स्पीड को भी देखना है |  अभी सम्पूर्णता का लक्ष्य रखना है तब सम्पूर्ण राज्य में आएंगे |  कोई कमी रह गयी तो सम्पूर्ण राज्य नहीं पाएंगे |  जितनी ज्यादा प्रजा बनायेंगे उतना नजदीक में आयेंगे |  दूर वाले तो दूर ही देखने आएंगे |  नजदीक वाले हर कार्य में साथ रहेंगे |  नंबरवन शक्तियां हैं वा पाण्डव हैं ?  दुसरे को आगे बढ़ाना यह भी तो खुद आगे बढ़ना है |  आगे बढ़ानेवाले का नाम तो होगा ना |  बीच-बीच में चेकिंग भी चाहिए |  हर कार्य करने के पहले और बाद में चेकिंग करते रहो |  जब कार्य शुरू करते हो तो देखो उसी स्थिति में रह कार्य शुरू कर रहा हूँ ?  फिर बिच में भी चेकिंग करते रहो |  कितना समय याद रही ?  कार्य के शुरू में चेकिंग करने से वह कार्य भी सफल होगा और स्थिति भी एकरस रहेगी |  सिर्फ़ रात को चार्ट चेक करते तो सारा दिन तो ऐसे ही बीत जाता है |  लेकिन हर कर्म के हर घंटे में चेकिंग चाहिए |  अभ्यास पद जाता है तो फिर वह अभ्यास अविनाशी हो जाता है |  हिम्मत रखने से फिर सहज हो जायेगा |  मुश्किल सोचेंगे तो मुश्किल फील होगा |  अपने पुरुषार्थ को कब तेज़ करेंगे, अभी समय ही कहाँ है |

सारे कल्प की तकदीर इस घडी बनानी है |  ऐसे ध्यान देकर चलना है |  सारे कल्प की तकदीर बनने का समय अब है |  इस समय को अमूल्य समझ कर प्रयोग करो तब सम्पूर्ण बनेंगे |  एक सेकंड में पद्मों की कमाई करनी है |  एक सेकंड गँवाया गोया पद्मों की कमाई गंवायी, अटेंशन इतना रखेंगे तो विजयी बनेंगे |  एक सेकंड भी व्यर्थ नहीं गँवाना है |  संगम का एक सेकंड भी बहुत बड़ा है |  एक सेकंड में ही क्या से क्या बन सकते हो |  इतना हिसाब रखना है |  अच्छा-